Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
View full book text
________________
"आशीर्वाद सह अनुमोदना” खरतरगच्छ के शिरोमणि १५वीं सदी के मूर्धन्य विद्वान् एवं ज्ञानी श्री वर्धमानसूरिजी ने “आचारदिनकर" नामक इस महाग्रन्थ को प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में निबद्ध किया है। इसमें वर्णित विधि-विधानों का अनुसरण कर संघ का भविष्य समुज्जवल बने, व्यक्ति अपने कर्त्तव्य को समझे एवं अपने आचार-विचार एवं संस्कारों से जीवनशैली को परिमार्जित करे।
ग्रन्थ के अनुवाद के सम्प्रेरक एवं प्रज्ञावान् डॉ. सागरमलजी सा. के दिशानिर्देशन में जैनकोकिला प्रवर्तिनी श्री विचक्षणश्रीजी म.सा. एवं पू. प्रवर्तिनी तिलकश्रीजी म.सा. की प्रशिष्या विद्वद्वर्या मोक्षरत्नाश्रीजी ने जन-हिताय एवं आत्म-सुखाय इस ग्रन्थ का अनुवाद किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ चार खण्डों में विभक्त है - प्रथम खण्ड में गृहस्थ-जीवन से सम्बन्धित सोलह संस्कारों को संजोया है, द्वितीय खण्ड में मुनि-जीवन से सम्बन्धित सोलह संस्कारों को ज्ञापित किया है तथा तृतीय एवं चतुर्थ खण्ड में मुनि एवं गृहस्थ - दोनों के जीवन में उपयोगी - ऐसे आठ सुसंस्कारों को निबद्ध किया गया है। साध्वी मोक्षरत्नाश्रीजी ने इस अति दुरूह ग्रन्थ के द्वय खण्डों का अनुवाद कर उनका प्रकाशन करवा दिया है, जो पाठकगणों के हाथों में भी आ चुके हैं। अब इसका तृतीय एवं चतुर्थ खण्ड प्रकाशित होने जा रहे हैं। वास्तव में साध्वी का यह पुरुषार्थ सफलता के शिखर पर पहुँच रहा है। शासनदेव, गुरुदेव एवं गुरुवर्याश्री के असीम आशीर्वाद से साध्वी ने अत्यल्पकाल में ही सम्पूर्ण ग्रन्थ को अनुवादित कर दिया है। रसिकजन इन भागों का आद्योपात अध्ययन एवं पारायण कर अपने जीवन को निर्मल बनाएं तथा अपने को सच्चा जैन सिद्ध करें, यही शुभभावना है। विदुषी आर्या के भगीरथ प्रयास से अनुवादित इन ग्रन्थों को देखने का अवसर मुझे मिला है, मैं इनकी भूरि-भूरि अनुमोदना करती हूँ एवं अन्तर्भावों से आशीर्वाद प्रदान करती हुई, उनके भावी तेजस्वी जीवन की मंगलकामना करती हूँ।
विचक्षणविणेया-महत्तरा विनीताश्री
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org