Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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"शुभाशंसा" स्वाध्यायप्रेमी मोक्षरत्नाश्रीजी द्वारा अनुवादित आचारदिनकर ग्रंथ के तीसरे भाग का जो प्रकाशन किया जा रहा है, वह प्रशंसनीय, अनुमोदनीय एवं अनुकरणीय है। उनका यह परिश्रम सफल हो और जन-जन के मन में ज्ञान का दिव्य प्रकाश प्रसारित करे। उनकी यह साहित्य-यात्रा दिन प्रतिदिन प्रगति के पथ पर गतिमान हो, उनकी ज्ञान-साधना एवं संयमी-जीवन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।
वे सदा-सर्वदा संयम की सौरभ फैलाती हुई, ज्ञानार्जन करती रहें एवं अपनी प्रतिभा द्वारा जनमानस में वीरवाणी का प्रसार करती रहें, ऐसी शुभ मनोभावना है।
साथ ही वे खरतरगच्छसंघ एवं विचक्षण-मंडल में तिलक के समान चमकती रहें तथा अपनी मंजुल वाणी से भव्य जीवों में ज्ञान का प्रकाश फैलाते हुए उन्हें मोक्षाभिलाषी भी बनाती रहें। यही शुभ आशीर्वाद।
विचक्षणशिशु मंजुलाश्री __ "अनुमोदनीय प्रयास"
साध्वी श्री मोक्षरत्नाश्रीजी ने आचारदिनकर जैसे कठिन किंतु महत्त्वपूर्ण ग्रंथ का अनुवाद किया है, यह जानकर प्रसन्नता हो रही है। उनके द्वारा प्रेषित प्रथम भाग एवं द्वितीय भाग देखा। अब उसका तीसरा एवं चौथा भाग भी छप रहा है - यह जानकर प्रमोद हो रहा है। जिनशासन की सेवा परमात्मा की सेवा है और ज्ञानाराधना मोक्षमार्ग की साधना का ही अंग है। साध्वीजी के इस पुरुषार्थ से जैन-गृहस्थ और साधु-साध्वीगण हमारे पूर्वाचार्यों द्वारा प्रणीत विधि-विधानों से परिचित हों और साधना-आराधना में प्रगति करें, यही शुभभावना है। साध्वी मोक्षरत्नाश्रीजी विचक्षण-मण्डल की ही सदस्या हैं, उनकी यह ज्ञानाभिरुचि निरन्तर वृद्धिगत होती रहे, यही शुभ-भावना है।
विचक्षणचरणरेणु
मणिप्रभाश्री
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