Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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" मंगलकामना सह शुभेच्छा”
जैन संस्कृति हृदय और बुद्धि के स्वस्थ समन्वय से मानव-जीवन को सरस, सुन्दर और मधुर बनाने का दिव्य संदेश देती है । विचारयुक्त आचार और आचार के क्षेत्र में सम्यक् विचार जैन - संस्कृति का मूलभूत सिद्धान्त है। किसी भी धर्म के दो अंग होते हैं विचार और आचार । विचार धर्म की आधार - भूमि है, उसी विचार-धर्म पर आचार धर्म का महल खड़ा होता है । विचार और आचार को जैन - परिभाषा में ज्ञान और क्रिया, श्रुत और चारित्र, विद्या और आचरण कहा जाता है। भगवान् महावीर ने जीवनशुद्धि के लिए जिस सरल सहज धर्म को प्ररूपित किया, उसे हम मुख्यतः दो विभागों में बाँट सकते हैं - विचारशुद्धि का मार्ग तथा आचारशुद्धि का मार्ग। धर्म की परीक्षा मनुष्य के चरित्र से ही होती है। आचार हमारा जीवनतत्त्व है, जो व्यक्ति में, समाज में, परिवार में, राष्ट्र में और विश्व में परिव्याप्त है । जिस आचरण या व्यवहार से व्यक्ति से लेकर राष्ट्र एवं विश्व का हित और अभ्युदय हो, उसे ही संस्कारधर्म कहा जाता है।
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खरतरगच्छीय आचार्य वर्धमानसूरि द्वारा विरचित आचारदिनकर का अनुवाद हमारी ही साध्वीवर्या श्री मोक्षरत्नाश्रीजी ने किया है। अनुवाद की शैली में यह अभिनव प्रयोग है। आचारदिनकर में प्रतिपादित जैन गृहस्थ एवं मुनि-जीवन के विधि-विधानों का अनुवाद कर साध्वीश्री ने जैन-परम्परा की एक प्राचीन विधा को समुद्घाटित किया है तथा रत्नत्रय की समुज्ज्वल साधना करते हुए जिनशासन एवं विचक्षण - मंडल का गौरव बढ़ाया है। प्रस्तुत ग्रंथ के पूर्व में प्रकाशित दो खण्डों (भागों) को देखकर आत्मपरितोष होता है। विषय-वस्तु ज्ञानवर्द्धक और जीवन की अ गहराईयों को छूने वाली है। यह अनुवाद जिज्ञासुओं ( पाठकगणों) के लिए मार्गदर्शक और जीवन को पवित्र बनाने की प्रेरणा प्रदान करेगा। लघुवय में साध्वी श्री मोक्षरत्नाजी ने डॉ. सागरमल जैन के सहयोग से ऐसे ग्रंथ को अनुवादित कर अपनी गंभीर अध्ययनशीलता एवं बहुश्रुतता का लाभ समाज को दिया है। यह अनुवाद जीवन-निर्माण में कीर्तिस्तम्भ हो, यही मंगलभावना सह शुभेच्छा है ।
मानिकतल्ला दादाबाड़ी कोलकाता
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विचक्षण गुरु चरणरज चन्द्रप्रभाश्री
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