Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 4
________________ दीक्षा ४, ज्ञान ५, कल्याणकेषु हस्तोत्तरा यस्य सः तथा ६ निर्वाणस्य स्वातौ जातत्वादिति । इस पाठ में श्रीकुलमंडन सूरिजी ने श्रीवीरग(पहार को कल्याणकरूप ही मान कर श्रीवीर परमात्मा के ६ कल्याणक बतलाये हैं । तथा श्रीपृथ्वीचंद्रसूरिजी विरचित श्रीपर्युषण कल्प टिप्पनी का पाठ । यथा हस्त उत्तरो यासां ता बहुवचनं बहुकल्याणकापेन मित्यत्र पंचसु पंच स्वातौ ६ षष्ठमेव ध्वन्यते इति । अर्थ-इस पाठ में मूल कल्पसूत्र पाठ के अनुसार श्रीपृथ्वीचंद्रसूरिजी महाराज ने श्रीवीरप्रभु के पाँच कल्याणक हस्तोत्तरा नक्षत्र में और स्वाती नक्षत्र में छठवाँ मोक्ष कल्याणक बताया है । और श्रीआगमिकगच्छ नायक श्रीमत् जयतिलकसूरिजी महाराज रचित मुद्रित सुलसाचरित्र में सर्ग ६ श्लोक ४६ का पाठ । यथासिद्धार्थराजांगजदेवराज, कल्याणकैः षड्भिरितिस्तुतस्त्वाम् । तथा विधेांतरवैरिषट्कं, यथा जयाम्यासु तव प्रसादात् । ४६ । भावार्थ-इस श्लोक से श्रावक अंबड परिव्राजक ने समवसरण में श्रीवीर प्रभु के सन्मुख ६ कल्याणकों से स्तुति की है, अतएव उपर्युक्त सूरिजी महाराज ने भी श्रीमहावीर प्रभु के प्रागम-संमत ६ कल्याणकों का प्रतिपादन किया है । प्रिय पाठकंगण ! उपर्युक्त अनेक शास्त्रीय पाठों से सिद्ध होता है कि देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि से गर्भापहार के द्वारा विशला माता की कुक्षि में गर्भपणे से श्रीवीरप्रभु प्राये, वह कल्याणक रूप है, इसको अपनी प्रतिज्ञानुसार श्रीमानंदसागर जीसाकार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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