Book Title: Prashnottar Vichar Author(s): Unknown Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 3
________________ देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि के मध्य से क्षत्रिय कुंडग्राम नगर में श्रीऋषभदेव स्वामी के वंशवाले क्षत्रिय विशेष के मध्य में काश्यप गोत्रवाले सिद्धार्थ क्षत्रिय की भार्या वाशिष्ठस गोत्रवाली त्रिशला क्षत्रियाणी की कुति में गर्भपने से जो स्थापन करने वह कल्याणक रूप है इति । यहाँ पर बुद्धिमान् पुरुषों को पक्षपात-रहित विचार करना उचित है कि जब सूत्रकार तथा टीकाकार महाराजों ने लिखा है कि श्रीइन्द्र महाराज ने श्रीवीर प्रभु को त्रिशला रानी की कुक्षि में स्थापन करने के लिये देवानंदा की कुत्ति से श्रीवीर गर्भापहार को [ सेयं-श्रेयः] इस वाक्य द्वारा अपना कल्याण रूप माना है तो उक्त श्रीवीर गर्भापहार को सूत्र-विरुद्ध अत्यंत निंदनीयरूप अकल्याणकरूप मानना यह पूर्ण अविचार है चा नहीं ? और भी देखिये तपगच्छनायक श्रीकुलमंडन सूरिजी महाराज विरचित श्रीकल्पसूत्र अवचूरि में लिखा है कि तीर्थकर श्रीऋषभदेव स्वामी तथा अन्य तीर्थकरों ने भी तीर्थकर श्रीवर्द्धमान स्वामी के च्यवन आदि ६ कस्याणकों का हेतुरूप काल और समय को प्रतिपादन किया है, सो बताते हैं । कल्पसूत्र अवचूरि का पाठ । यथा यौ कालसमयौ भगवता ऋषभदेवस्वामिना अन्यैश्च तीर्थकरैः श्रीवर्द्धमानस्य षण्णां च्यवनादीनां कल्याणकानां हेतुत्वेन कथितौ तावेवेति ब्रमः पंच हत्थुत्तरे होत्थेति हस्तादुत्तरस्यां दिशि वर्तमानत्वात् हस्तोत्तरा हस्त उत्तरो यासां वा ता हस्तोत्तरा उत्तराफाल्गुन्यः बहुवचन बहु कल्याणकापेक्षं पंचसु च्यवन १, गर्भापहार २, जन्म ३, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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