Book Title: Prakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 14
________________ कुछ परवर्ती खारवेल के अभिलेख की भाषा है, जिसमें मागधी के साथ साथ उड़ीसा की तत्कालीन क्षेत्रीय बोली का प्रभाव है। ई.पू.तीसरी शताब्दी से प्रथम शती तक इनका काल है। इन अभिलेखों के लगभग समकालीन या कुछ परवर्ती पाली त्रिपिटक एवं अर्धमागधी के प्राचीन ग्रन्थ आचारांग,इसिभासियाई आदि के पूर्ववर्ती संस्करणों की भाषा है। इसके प्रमाण कुछ प्राचीनतम हस्तप्रतों में आज भी अधिकांशतः सुरक्षित हैं। इनका काल भी प्रायः पूर्ववत् ई.पू. ही है। 3. तीसरे क्रम पर प्रज्ञापना आदि परवर्ती अर्धमागधी आगमों की तथा आगमतुल्य शौरसेनी के ग्रन्थों की एवं मथुरा के प्राचीन अभिलेखों की भाषा है। पैशाची प्राकृत भी इन्हीं की प्रायः समकालिक है। इसके अतिरिक्त, कुछ प्राचीन नाटकों में प्रयुक्त प्राकृतें भी इसी काल की हैं। इस काल का प्राचीन आदर्श ग्रन्थ 'पउमचरियं' है। इनका काल ईसा की प्रथम शती से पांचवी शती के मध्य माना जाता है। कालक्रम का यह निर्धारण अनुमानित ही है। इसको एक-दो शती आगे-पीछे किया जा सकता है। मागधी एवं अर्धमागधी क्यों प्राचीन हैं? इसलिए क्योंकि भगवान् महावीर और भगवान् बुद्ध ने अपने उपदेश इसी भाषा में दिए थे। इस सम्बन्ध में 'अर्धमागधी आगम' साहित्य से कुछ प्रमाण प्रस्तुत किए जा रहे हैं, यथा1. भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खई। - समवायांग, समवाय 34, सूत्र 22 2. तए णं समणे भगवं महावीरे कुणिअस्स भभसारपुत्तस्स अद्धमागहाए भासाए भासिता अरिहा धम्मंपरिकहेई। - औपपातिक सूत्र 1 3. गोयमा! देवा णं अद्धमागहीए भासाए भासंति स वि य णं अद्धमागहा भासा भासिजमाणी विसज्जति।-भगवई, लाडनूं, शतक 5, उद्देशक 4, सूत्र 93 तए णं समये भगवं महावीरे उसभदत्तमाहणस्स देवाणंदामाहणीए तीसे य महति महलियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए.... सव्व भाषाणु... गमिणिय सरस्सईए जोयणणीहारिणासरेणं अद्धमागहाए भासाए भासए धम्म परिकहेई। - भगवई, लाडनूं, शतक 9, उद्देशक 33, सूत्र 149 5. तए णं समये भगवं महावीरे जामालिस्स खत्तियकुमारस्य.... अद्धमागहाए भासाए

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