Book Title: Prakrit Bhasha Ka Prachin Swarup Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prachya VidyapithPage 73
________________ नियम बनाये जाते हैं और ये व्याकरण के नियम जिस भाषा के शब्दरूपों के आधार पर होते हैं, उस भाषा के शब्दरूपों को समझाते हैं। वे ही उसकी प्रकृति कहलाते हैं। यह सत्य है कि बोली का जन्म पहले होता है, व्याकरण उसके बाद बनता है। शौरसेनी अथवा प्राकृत की 'प्रकृति' संस्कृत मानने का अर्थ इतना ही है कि इन भाषाओं के जो भी व्याकरण बने हैं, वे संस्कृत शब्दरूपों के आधार पर बने हैं। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि प्राकृत का कोई भी व्याकरण प्राकृत के लिखने या बोलने वालों के लिये नहीं बनाया गया, अपितु उनके लिए बनाया गया, जो संस्कृत में लिखते या बोलते थे। यदि हमें किसी संस्कृत के जानकार व्यक्ति को प्राकृत के शब्द या शब्दरूपों को समझाना हो, तो तदर्थ उसका आधार संस्कृत को ही बनाना होगा और उसी के आधार पर यह समझाना होगा कि प्राकृत का कौनसा शब्दरूप संस्कृत के किसी शब्द से कैसे निष्पन्न हुआ है? इसलिए, जो भी प्राकृत व्याकरण निर्मित किये गए, वे अपरिहार्य रूप से संस्कृत शब्दों या शब्दरूपों को आधार मानकर प्राकृत शब्द या शब्द-रूपों की व्याख्या करते हैं और संस्कृत को प्राकृत की 'प्रकृति' कहने का इतना ही तात्पर्य है। इसी प्रकार, जब मागधी, पैशाची या अपभ्रंश की 'प्रकृति' शौरसेनी कहा जाता है, तो उसका तात्पर्य यही होता है कि प्रस्तुत व्याकरण के नियमों में इन भाषाओं के शब्दरूपों को शौरसेनी शब्दों को आधार मानकर समझाया गया है। 'प्राकृतप्रकाश' की टीका में वररूचि ने स्पष्टतः लिखा है- शौरसेन्या ये शब्दास्तेषां प्रकृतिः संस्कृतम् (12/2), अर्थात् शौरसेनी के जो शब्द हैं, उनकी प्रकृति या आधार संस्कृत शब्द हैं। __यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि प्राकृतों में तीन प्रकार के शब्दरूप मिलते हैं-तद्भव, तत्सम और देशज। देशज शब्द वे हैं, जो किसी देश-विशेष में किसी विशेष अर्थ में प्रयुक्त रहे हैं। इनके अर्थ की व्याख्या के लिए व्याकरण की कोई आवश्यकता नहीं होती है। तद्भव शब्द वे हैं, जो संस्कृत शब्दों से निर्मित हैं, जबकि संस्कृत के समान शब्द तत्सम कहलाते हैं। संस्कृत व्याकरण में दो शब्द प्रसिद्ध हैं- प्रकृति और प्रत्यय। इनमें मूल शब्दरूप को प्रकृति कहा जाता है। मूल शब्द से जो शब्दरूप बना है, वह तद्भव है। प्राकृत व्याकरण संस्कृत शब्द से प्राकृत का तद्भव शब्दरूप कैसे बना है, इसकी व्याख्या करता है। अतः, यहाँ संस्कृत को 'प्रकृति' कहने का तात्पर्य मात्र इतना ही है कि तद्भव शब्दों के संदर्भ में संस्कृत शब्द को आदर्श मानकर या मॉडल मानकर यह व्याकरण लिखाPage Navigation
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