Book Title: Prakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 128
________________ का नाम भी नहीं जानते थे, क्योंकि जानते होते, तो अवश्य निर्देश करते और भाई सुदीपजी उसके नाम और लक्षण - दोनों जानते हैं, अतः ये उनसे बड़े पण्डित और विद्वान् हैं। उनके और उनकी आधारहीन स्थापनाओं के संबंध में हम क्या कहें ? पाठक स्वयं विचार कर लें। वस्तुतः, आजकल डॉ. सुदीपजी का मात्र एकसूत्रीय कार्यक्रम है, वह यह कि अर्धमागधी आगम साहित्य को कृत्रिम (बनावटी) रूप से पांचवीं शती में निर्मित कहकर उसके प्रति आस्थाशील श्वेताम्बर समाज की भावनाओं को आहत करना, इसलिए वे नित्य नये शगूफे छोड़ते रहते हैं। उनके मन में अर्धमागधी और उसके साहित्य के प्रति कितना विद्वेष है, यह उनकी शब्दावली से ही स्पष्ट है। वे प्राकृत विद्या, अप्रैल-जून 1998 में पृ.14-15 पर लिखते हैं - 'कई आधुनिक विद्वान् तो इसे (हाथीगुम्फा शिलालेख को ) अर्धमागधी में निबद्ध भी कहकर आत्मतुष्टि का अनुभव कर लेते हैं, वे यह तथ्य नहीं जानते हैं कि आज की कथित अर्धमागधी प्राकृत तो कभी लोकजीवन में प्रचलित ही नहीं रही है, इसलिए लोक साहित्य और नाट्य साहित्य में कहीं भी इसका प्रयोग तक नहीं मिलता है। ईसापूर्व काल में इस भाषा का अस्तित्व नहीं था । यह तो पाँचवीं शताब्दी में वलभी वाचना के समय कृत्रिम रूप से निर्मित की गई भाषा है। यह अत्यन्त खेद की बात है कि आज के अधिकांश विद्वान ओड्मागधी प्राकृत का नाम भी नहीं जानते हैं। जिसे वे शौरसेनी से प्रभावित मागधी यानी अर्धमागधी कहते हैं, वस्तुतः वह यही ओमागधी है, जो ईसा पूर्व काल में प्रचलित थी। पाँचवीं शताब्दी ईस्वी में यह अस्तित्व में आई एवं कुछ लोगों ने मिल-बैठकर कृत्रिम रूप से बनायी गयी तथाकथित अर्धमागधी या आर्षभाषा नहीं थी। इसका नाम छिपाकर कृत्रिम अर्धमागधी भाषा पर ओड्मागधी प्राकृत की विशेषताओं का लेबिल चिपकाकर धुआंधार प्रचार करना एक झूठ को सौ बार बोलो, तो वह सच हो जायेगा। इस भ्रामक मानसिकता के कारण हुआ है। वस्तुतः, यह तथाकथित कृत्रिम अर्धमागधी प्राकृत न तो लोकजीवन में थी, न लोकसाहित्य में थी, न किसी अभिलेख आदि में रही है और न ही व्याकरण एवं भाषाशास्त्र ने कभी इसे मान्यता दी है। कोरी नारेबाजी से कोई भाषा न तो बनती है और न चलती है। भरतमुनि कथित ओमागधी को अर्धमागधी बताकर बहुत दिनों तक चला लिया तथा इसे प्रमाण बताकर अर्धमागधी को ईसा पूर्व तक ले जाने का प्रयत्न भी किया।

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