Book Title: Prakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

Previous | Next

Page 91
________________ भाषा मूलतः शौरसेनी प्राकृत ही है, जिसे कृत्रिम रूप से संस्कृतनिष्ठ बनाकर पूर्वदेशीय प्रभावों के साथ पाली रूप दिया गया। उसे खींच-तानकर प्राचीन बनाने की कोशिश की गयी है, जिससे उसकी वाक्यरचना में जटिलता आ गई है। इसी कारण, मैं शौरसेनी को ही मूल प्राकृत भाषा मानता हूँ। मागधी भी लगभग इतनी ही प्राचीन है, परन्तु वस्तुतः उसमें पूर्वीय उच्चारण-भेद के अतिरिक्त अन्य कोई अन्तर नहीं है, मूलतः वह भी शौरसेनी ही है । ' - प्रो. भोलाशंकर व्यास (प्राकृतविद्या, जनवरी - मार्च 1997, पृ. 17) यद्यपि इन विचारबिन्दुओं में अधिकांश वे ही हैं, जिन्हें नथमलजी टाँटिया के व्याख्यान के संदर्भ में भी प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार, प्रो. व्यासजी के व्याख्यान में उभरकर आये विचार-बिन्दुओं में यद्यपि कोई नवीन मुद्दे सामने नहीं आये हैं, फिर भी यहाँ उनकी समीक्षा कर लेना अप्रासंगिक नहीं होगा। 1. शौरसेनी प्राकृत ही मूल प्राकृत थी, इसकी समवर्ती मागधी प्राकृत इसका क्षेत्रीय संस्करण थी'. शौरसेनी प्राकृत यदि मूल प्राकृत थी, तो फिर भास के नाटकों (ईसा की दूसरी शती) के पूर्व के प्राकृत अभिलेखों और प्राकृत के ग्रन्थों में शौरसेनी की प्रवृत्तियाँ अर्थात् मध्यवर्ती ‘त्’ के स्थान पर 'द्' एवं 'न्' के स्थान पर 'ण्' क्यों नहीं दिखाई देता है ? इस सम्बन्ध में हम विस्तार से चर्चा अपने अन्य लेखों 'जैन आगमों की मूलभाषा - अर्धमागधी या शौरसेनी’1, 'अशोक के अभिलेखों की भाषा' 2 आदि में कर रहे हैं। सत्यता यह है कि ईसा की दूसरी शती के पूर्व उस शौरसेनी प्राकृत का कहीं कोई अता-पता ही नहीं था, जिसे मूल प्राकृत कहा जा रहा है। प्रो. व्यासजी का यह कथन कि 'मागधी प्राकृत शौरसेनी प्राकृत का क्षेत्रीय संस्करण थी', यह भाषा-शास्त्रीय ठोस प्रमाणों पर आधारित नहीं है, क्योंकि मूलतः सभी प्राकृतें अपनी-अपनी क्षेत्रीय बोलियों से ही विकसित हुई हैं। मागधी, पैशाची, शौरसेनी, महाराष्ट्री आदि प्राकृतों को प्राकृत भाषा के क्षेत्रीय संस्करण तो कहा जा सकता है; किन्तु इनमें से किसी को भी मूल और दूसरी को उसका क्षेत्रीय संस्करण नहीं कहा जा सकता। इनमें से किसी को माता और किसी को पुत्री नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि ये तो सभी बहनें हैं। यदि हम कालक्रम की दृष्टि से विचार करें, तो हमें यही मानना होगा कि लिखित भाषा के रूप में मागधी ही सबसे प्राचीन प्राकृत है। अतः, इस दृष्टि से प्रो. व्यासजी का यह 85

Loading...

Page Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132