Book Title: Prakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 116
________________ होगा कि उस काल में उस क्षेत्र में किस प्रकार की भाषा प्रचलित थी, क्योंकि देश और काल के भेद से भाषा का स्वरूप बदलता है और उसकी उच्चारण शैली भी बदलती है। ___ पं. जगमोहन वर्मा (प्राचीन भारतीय लिपिमाला, पृ.30) का तो यहाँ तक कहना है कि ट्, त्, ड्, द, ण.. ये मूर्द्धन्य वर्ण पाश्चात्य अनार्यों के प्रभाव से भारतीय आर्य भाषा में सम्मिलित किये गये। उनकी यह अवधारणा कितनी सत्य है यह विवाद का विषय हो सकता है, किन्तु आनुभाविक स्तर पर इतना तो सत्य है कि उत्तर-पश्चिम की बोलियों और भाषाओं में आज भी इनका प्रयोग अपेक्षाकृत अधिक होता है। प्राकृतों में भी परवर्ती प्राकृतों और अपभ्रंशों में ही अपेक्षाकृत इनका प्रयोग अधिक होता है। खरोष्ठी लिपि में 'न्’ को मूर्धन्य 'ण' पढ़ा जाये अथवा दन्त्य 'न्' पढ़ा जाये, इसका समाधान यह है कि जहाँ तक साहबाजगढ़ी और मान्सेरा के अशोक के अभिलेखों का प्रश्न है, वे चाहे खरोष्ठी लिपि में लिखे गये हैं, किन्तु उनकी भाषा मूलतः मागधी ही है, अतः उस काल की मागधी भाषा की प्रकृति के अनुसार उनमें आये हुए 'न्’ को दन्त्य 'न्' ही पढ़ना होगा। पुनः, वे ही लेख जिन-जिन स्थानों पर ब्राह्मीलिपि उत्कीर्ण हुए हैं और यदि वहाँ उनमें आये 'न्' को यदि दन्त्य 'न्' के रूप में उत्कीर्ण किया गया है, तो यहाँ भी हमें उन्हें दन्त्य 'न' के रूप में पढ़ना होगा, क्योंकि उच्चारण/ पठन भाषा की प्रकृति के आधार पर होता है, लिपि की प्रकृति के आधार पर नहीं। आज भी अंग्रेजी में उच्चारण भाषा की प्रकृति के आधार पर ही होता है। अक्षर की आकृति के आधार पर नहीं। उदाहरणार्थ (C) का उच्चारण 'क', कभी 'श' और कभी 'च' होता है। यहाँ भी हमें यह स्वतन्त्रता नहीं है कि अपनी इच्छा से कोई भी उच्चारण कर लें। एक दूसरा उदाहरण लें, यदि संस्कृत या हिन्दी भाषा का कोई शब्द रोमन में लिखा गया है और यदि उसके लेखन में डाईक्रिटिकल चिह्नों का उपयोग नहीं किया गया है तो हमें उन रोमन वर्णों का उच्चारण संस्कृत या हिन्दी की प्रकृति के आधार पर करना होगा, रोमन लिपि के आधार पर नहीं। अतः, मागधी भाषा के खरोष्ठी लिपि में लिखे गये लेख का उच्चारण तो मागधी की प्रकृति के आधार पर ही होगा और मागधी की प्रकृति के आधार पर वहाँ 'न्' ही पढ़ना होगा, 'ण' नहीं। पुनः, खरोष्ठी लिपि में पैशाची प्राकृत के भी लेख हैं, उनका उच्चारण पैशाची प्राकृत के आधार पर ही होगा। ज्ञातव्य है कि पैशाची प्राकृत में तो 'ण' का भी 'न्' होता है। इस

Loading...

Page Navigation
1 ... 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132