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संशोधन कार्य करे, तो उसमें सुविधा हो।
अन्त में, मैं यह कहना चाहूँगा कि प्रो.के.आर.चन्द्रा अपनी अनेक सीमाओं के बावजूद भी जो यह अत्यन्त महत्वपूर्ण और श्रमसाध्य कार्य कर रहे हैं, उसकी मात्र आलोचना करना कदापि उचित नहीं है, क्योंकि वे जो कार्य कर रहे हैं, वह न केवल करणीय है बल्कि एक सही दिशा देने वाला कार्य है। हम उन्हें सुझाव तो दे सकते हैं, लेकिन अनधिकृत रूप से येन-केन-प्रकारेण सर्वज्ञ और शास्त्र-श्रद्धा की दुहाई देकर उनकी आलोचना करने का कोई अधिकार नहीं रखते। क्योंकि वे जो भी कार्य कर रहे हैं, वह बौद्धिक ईमानदारी के साथ, निर्लिप्त भाव से तथा सम्प्रदायगत आग्रहों से ऊपर उठकर कर रहे हैं, उनकी नियत में भी कोई शंका नहीं की जा सकती, अतः मैं जैन विद्या के विद्वानों से नम्र निवेदन करूँगा कि वे शान्तचित्त से उनके प्रयत्नों की मूल्यवत्ता को समझें और अपने सुझावों एवं सहयोग से उन्हें इस दिशा में प्रोत्साहित करें।
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