Book Title: Prakarana Ratnakar Part 2
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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स्तोत्र.
हिता सुर रहई करिविषु उरकविघाय॥३४॥ मस कहंतिदु नावरि,न दडवड तण उद्द | वेक्कू ॥ सामिय सट्टलतेउ,लु डुनदु चंप परचक्कू ॥३५॥ जुत्तिवि किरिय नाणहरि, घ यंमण मनसुदिजुगग्गि ॥ कुकुनपदुबइ सिवनय, रितुह सासणरहिलग्गि ॥३६॥ परि कवि तुह तणु नूडहि,कंचणकांति रवन्न ॥ वियसहि महणयपुट्नम, तामझ नवजह तिन ॥३७॥ नुत्तरपद्यस्याग्रंन्दी संस्कृतं समसंस्कृतं प्राकृतं ३ दितीये पैशाची चूलिका पैशाचिके ॥ तार्तीयिके मागधीशौरसेन्यौ॥तुर्ये अपभ्रंशः॥
नायालीहयमंदयामयमलं नासं धरंतं परं राकालिं पवलोतयं अखचयासत्तं क मालाचितं ॥धीलं लोअमहं ददावहकलं बिन्नाहमायालदं नाधा नीदिरेसि वंदन पई साणं सीसुन्नई॥३०॥
॥ कविनामगर्नचक्रं ॥ तं प्राप्तो रुचिनक्ष्योगरजसोन्मीलत्प्रतोषान्वितं शस्तः सौष्ठवनममोहरवनः कं कं जहस्तविः ॥ रुच्या नास्करतिग्मसिविरमणीसंस्कृप्तनावः परं रंता ज्ञानरमांशमास्त रुषमे तन्याः सुविद्यां चिरं ॥ ३५ ॥ जगति विदितवान् यस्त्वत्कमाझास्वरूपं तव गु चिपदनावं संस्तवादध्यवस्य॥ रचयति निजकंठालंकियां स्तोत्रमेतनवति नवकरीणां सिंहसोनीष्टलक्ष्मीः ॥ ४०॥ इति श्रीजिनप्रनसूरिविरचितं अष्टनावात्मकं श्रीषन देवस्तवनं समाप्तम् ॥
॥अथ श्रीमहावीरस्तवनं ॥ चित्रैः स्तोष्ये जिनं वीरं चित्ररूचरित मुदा ॥ प्रतिलोमानुलोमाद्यैः खड्डाद्यैश्वातिचारुनिः ॥ १ ॥
॥प्रतिलोमानुलोमपाद॥ वंदे ऽमंददमं देवं यशमाय यमाशयः॥नायेनाघघनायेना पाहता ममता कपाश
॥अनुलोमप्रतिलोम ॥ दासतां तव नागारा नचेयाय मतामसा समतामययाचेनरागानावततां सदा॥३॥
॥अर्धप्रतिलोमानुलोम॥ वरदानवरादित्व त्वदिरावनदारव ॥ याज्यदेव नयान्यास सन्याय नवदेज्यया॥४॥
॥अचम॥ श्रीद वीर विरेनत्वं दमिताद गतागुन॥ वीताक्षमारंनितारे रद मां सदरंगवि५
३४
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