Book Title: Prakarana Ratnakar Part 2
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 308
________________ ១៥ថ្មី अध्यात्ममतपरीक्षा. - - व्या:- जे साधु लब्धिरहित होय, तेने स्थिविरकल्प मार्गज हितकारी जे. ते समये जिनकल्प त्याग करवा योग्य वे. ज्यारे आत्मज्ञान थाय त्यारे जिनकल्प आदरवो. परंतु असमर्थ बतां उत्कृष्ट मार्गनो जे अादर करवो ते केवल भार्तध्याननो हेतु थायले. यतः 'अकालौ त्सुक्यस्य तत्वतःआर्तध्यानरूपत्वात धर्मविदो" ॥३॥ वेज्जुवदिई सह, मिव जिणकहियं हिअंत मग्गं ॥ सेवं तो दोश् सुही, इहरा विवरीअफलनागी ॥ ३३ ॥ व्या:- माटे नगवंते कहेला मार्गने जे नजे ते सुखी थाय; अने जगवंते जे म कयुं तेम जे करवा मांझे ते विपरीत फलने लायक थाय. जेम रोगी वैदे कहेली औषधी जो सेवे, तो रोगरहित थाय पण वैदना कस्या प्रमाणे न करे तो अपथ्य सेवन करतो बतां जेम अकाले नाश पामे. तेम ए पण जाणी लेवु.॥३३॥ अणगृहितो सत्तिं, मुंजतोवि जद पो चयऽ मग्गं॥ अगहिंतो सत्तिं, तह नवगरणं धरंतोवि ॥ ३४ ॥ व्या:- सकल आत्मशक्तिने फोरवनारो यति संयमादिकने अर्थे, जेम आहा र करतो बतां जिनमार्गनो त्याग करतो नथी : तेम स्वाध्यायादिकने अर्थेपण ते यतिए धर्मोपकरणनो त्याग करवो नही. यत : “तिहिं नाणेहिं वत्थंधरेजा, तं जहा, हरिवत्तियं, उगंबवत्तियं परीसहवत्तिअं" इति. लजा अथवा गंडा मटा डवाने तथा संयमने अर्थ वस्त्र धारण करवां जोये. जो वस्त्र न होय ने नग्न होय तो लजाथाय, अने संयम पले नही; जो वस्त्र न होयतो लोक निंदा करे के, ए धर्म सारो नथी केमके जेमां साधु नघाडा फरेने. ते टालवाने अर्थे वस्त्र धारण करवा : जो वस्त्र न होय तो टाढ तथा तापप्रमुख लागे तेथी चारित्रनंगरूप आर्तध्यान उत्पन्न थाय ते मटाडवाने अर्थे वस्त्र धा रण करवां. एम कारणीक वस्त्र होवाथी अमे साहसवंत बतां केम धारण करिये : एम जो कहेशो तो थाहार पण कारणीक कह्यु बतां तेपण तमारे क रवो न जोये. यतः "बहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे थाहार माहारे मागे कम तं वेयण वेयावचे इरियहाए असंयमहए तह पाण पत्तियाए बहं पुण धम्मचिं ताए” इत्यादि कारणने लीधे यति थाहार करे तेथी आझार्नु अतिक्रमण थाय नही. तेना कारण आले:- कुधानी वेदनाने मटाडवाने अर्थे, वेयावच करवाने अर्थे ईशिोधवाने अर्थे, संयम पालवाने अर्थे प्राणधारवाने अर्थे, तथा स्वाध्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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