Book Title: Prakarana Ratnakar Part 2
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 328
________________ ३० अध्यात्ममतपरीता. ना अवियोगनी इबा कयाकरे, तेणे करी ते वस्तु उपर गाढानुरागेकरी आर्न ध्यानना वश थयो थको जीव मुःखज पामे , माटे मोहमूढ जे जीव ले तेने परमार्थथकी कदी पण सुख नथी. ॥ ५ ॥ तो मोदणिजखयन तनवडकाणुबंधि विलएणं ॥ लहई सुहं सवल चएणो पुण बुहं चश्नं ॥ ६ ॥ व्या:- मोहनीयकर्मना व्यथी जीवने आहार करवानी रति तथा अरति उत्पन्न थायडे, ने मोहनीयकर्मना उदयथी जीवने मानस पुःख नत्पन्न थायले. ते दुःख केवलीने मटी जाय; पण असातावेदनीयकर्मना उदययी केवलीने जे हुधा तृषा लागे; तेनो ते त्याग करी शके नही. ॥ ६ ॥ घाश्व वेयणीअं इय जइ मोदं विणा | उस्कयरं ॥ पयर्ड पडिरूवान ता अमान विपयडीन ॥ ॥ . व्या:- पूर्वपदी कहेले के, वेदनीयकर्म घाती कर्मना जेवूने, माटे मोहनीय कर्मविना ते खदायक थाय नही. उक्तंच. “घादीववेदणीयं; मोहस्सुदएण घाददे जीवं:” इति कर्मकांमे. तेनुं समाधान ग्राम:- जो तमारा कह्या प्रमाणे होय तो असातावेदनीयनी पते केवलीने बीजी प्रतियो पण मोहनीय कर्मवि ना पोताना कार्यनी करनारी होवी जोये. अने तमे वेदनीयकर्मनीसाथे घातीकर्मनी तुव्यना केवीरीते करोडो ? घातीयाना रसना जेवो तेनो रस होयडे एम सरखा पणुं करोडो, के स्वकार्य करवानेविषे घातीयानी अपेदापणुं कल्पोबो; के य थवा दोषनुं हेतुपणुं कहोडो, ? जो कहेशोके घातीयाना रसना जेवो रस होवो जोये तो अघातीकर्म प्रकति घातीना जेवी होवी जोये. केमके, ज्यारे अघातीनी प्रकृति सर्व घातिनी प्रकृतिनी साथे वेश्ये त्यारे ते सर्व घातिनीप्रतिनो विपाक देखाडे, तथा ज्यारे देश घातिनीनो विपाक देखाडे, अने एकली वेश्ये त्यारे मा त्र ते एकलो पोतानोज विपाक देखाडे; माटे पद संनवतो नथी. जो कहेशो के, स्वकार्य करवानेविषे घातीयानी अपेक्षा होवी जोयेने, तो नामकर्म पण पू वै मोहनीयकर्मनी अपेक्षा करतुं बतां जेम केवलीने मोहविना थापणु कार्य करेले; तेम वेदनीय कर्म पण मोहनीयकर्मनी अपेक्षा विना कार्य करेः माटे बीजो पक्ष पण संनवे नही. जो कहेशो के वेदनीयकर्मथी दोष लागेजे, तो ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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