Book Title: Prakarana Ratnakar Part 2
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 333
________________ अध्यात्ममतपरीदा. ३१३ मतनो विचार करतां वास्तविक अर्थ सहज देखाई आवशे. माटे सूक्ष्म दृष्टिवडे ते अर्थ शोधन करो. ॥ १३ ॥ णय केवलनाणाई बुदाईपडिबंधगं जिणंदरस ॥ दादस्सिव मंताई इय जुत्तं तंतजुत्तीए ॥ ए४ ॥ व्या:- जेम दाहना प्रतिबंधक मंत्रादिक , तेम हुधादिकनुं प्रतिबंधक के वलज्ञान . ए वचन पण शास्त्रानुसार नथी. केमके, जेम हाथनेविषे मंत्रेलो अनि राख्यो बतां हाथ बलतो नथी एवं प्रत्यद दीनामां बावेले, तेथीज मंत्रादि क जे जे ते दाहना प्रतिबंधक बे, एवी कल्पना करायडे, तेम जो केवलीनेविषे वे दनीयादिक कर्मोदयरूप कारण बतां दुधादिक ननय उत्पन्न थतां नथी एम जो सम्मतशास्त्रमा कयुं होय तो एवी कल्पना थई शके; तेविना बोलवू व्यर्थ डे; माटे शास्त्रनी युक्तिए जिमपूर्वे कडुं ने तेम आदर, योग्य वे. ॥ ए४ ॥ खिजय बलं बुदाए णय तं जुज्जइ अणंतविरिणं ॥ इय नुत्तुं पिण सुत्तुं बलविरियाणं जन ने ॥ ५ ॥ व्या:- केवलीने जो नूरव लागती होय तो बलनी हाणी थाय. ते तो तेने विषे संनवे नही. केमके, वीर्यातरायकर्मना क्यने लीधे केवली अनंतवीर्यवंत जे. ए वचन पण अयोग्य ले. केमके, बल अने वीर्यमां नेद बे. शरीरनो जे पराक म ते बल कहेवायडे, अने अंतरंग जे शक्तिविशेष ते वीर्य कहेवायले. तेम बतां कुधाएकरी शरीरनुं बल घटेने, एविषे अमे ना कहेता नथी ए योगप्रत्यय ले; योग जे जे ते शरीरनामकर्मपरिणतिविशेषरूप ले. अने नामकर्म तो जगवंतनेविषे दीण थयुं नथी. ॥ ५॥ अ० पूर्वेपदी आशंका करे: बंधो परपरिणामा सो पुण नाणा | वीयमोहाणं ॥ जो गकया पिदु किरिया तो तेसिं दो णिवीआ ॥ ए६ ॥ व्या:- ग्रहण तथा मोचनादिक परपरिणामथी जीवने कर्मबंध थायजे. ते परिणाम वीतरागने ज्ञानना प्रतापे थाय नही. उक्तंच “ गेहदि णेव ण मुंचदि, ण परं परिणमदि केवली जगवं; पेनदि समंतदोसो, जाणदि सवं निरवसेसं" ति प्रवचनसारे. केवलीने तो योगनी किया पण नथी, त्यारे नोजननी शी कथा अर्थात् केवलीनेविषे जोजन पण संनवे नही जो नोजन क्रिया केवलीनेविषेमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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