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अध्यात्ममतपरीक्षाः
शएर व्या:- कोई एम कहे के, व्यवहाररूप बाह्य क्रियाथी अर्थ सिह थाय एवो | नियम नथी; केमके, क्रिया कखाविना नरत चक्रवर्तिने काच जुवनमा अनित्य नावना नावतां केवल ज्ञान उत्पन्न थयुं बने बाह्य क्रिया करतां रौष ध्यानना योगे प्रसन्नचं धान प्रति बांधि सीधी. माटे व्यवहार क्रिया करवी नही, किंतु निश्चय क्रियानो अंगीकार करवो. एम कहेनारा उन्मार्गनी प्ररूपणा करीने पोताना बोधबीजनो नाश करेजे. माटे ते वचन मान्य करवां नही. केमके,नरता दिकनुं स्वरूप कदाचित नावमा कहेवाय. एटले एवं कदाचितज बनेने, पण नि यमथी एमज थायडे एवं कोईनाथी कहेवाय नही. अने व्यवहार पंथमां तो व्य वहार क्रियाविना निश्चय क्रिया संनवेज नही. थने ए कारण माटे एक निश्चय अंगीकार करिने क्रिया मूकी देवी नही किंतु बन्न अवश्य करवीः ॥ ५ ॥
सर्व सहावसजं णि पपरकयं च ववहारा ॥ए
गते मितं जय पयमयं पण वयाणं ॥ ४३ ॥ व्या:- निश्चयनयनी रीतिए सर्व वस्तु स्वनावे उत्पन्न थायडे, विशिष्ट वस्तु परिणामने स्वनाव कहेले. ज्यारे बीजने अंकुरपणे उत्पन्न थवानो परिणाम था यजे, त्यारे बीजपर्याय टलीने अंकुरपर्याय उत्पन्न थायले. पण तेने बीजा का रणनी अपेक्षा होती नथी. यहीं कोई थाशंका करे के, जो बीजा कारणनी थ पेक्षा न होय तो कोठामा पडेला बीजनो केम घंकुररूपे परिणाम थतो नथी? एनो जवाबः- कोठामा पडेला बीजने अंकुररूप परिणाम थवानां बीजां कारणो जोयेडे, माटे व्यवहारनय पण अंगीकार करवो जोये . तेने सामग्री कहेने, ते सामग्री मब्याविना बीजनो अंकुररूपे परिणाम थाय नही. किंतु सामग्रीना योगे ते परिणाम थाय . कोई आशंका करे के जो सामग्रीथील कार्यनी उत्प त्ति थती होय तो तेने परिणाम एवं नाम राखवानुं कारण गुं? किंतु सामग्रीय की कार्यनी उत्पत्ति थायडे, एवो अंगीकार करवो जोश्ये. एनो जवाब के, सामग्रीथी कार्यनी उत्पत्ति थायजे एम मानिये तो व्यवहारनय सिम थाय पण निश्चयनय उमी जाय. तेथी एकांतपणुं थाय ते मिथ्यात्व कहेवाय. माटे बन्ने नयनुं मत प्रमाणनूत मानवं, जो एकलो निश्चय नय अंगीकार करिये ने व्यव हारनय अंगीकार नही करिये तो सामग्री थकी परिणाम विशेषनी उत्पत्ति मना य नही, अने एकज वस्तु कारण तथा अकारण ए बन्ने नावे कहेवाशे. त्यारे
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