Book Title: Prakarana Ratnakar Part 2
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 295
________________ अध्यात्ममतपरीदाः राज्य व्या० मात्र रागवेषविना बीजू कोई पण परव्य ते गुखोपयोगरूप अध्यात्म ने प्रतिकूल नथी. एम जो अंगीकार नही करशो तो लोकमां सर्वत्र धर्मास्तिका | यादिक परव्य नया जे, ते बधां प्रतिकूल कहेवासे. तेम तो संनवे नही : माटे शुक्षोपयोगरूप अध्यात्मने राग षज प्रतिकूल डे, एविनाबीजुं कोई परव्य प्र | तिकूल नथी एम जागवू. जो एम कहेशो के परिग्रहीत परव्य अध्या त्मनुं विरोधीज , पण अपरिग्रहीत परव्य अध्यात्मनुं विरोधी नथी. त्यारे श रीर रूपव्य परिग्रहीत बतां केम अध्यात्म उत्पन्न थायले ? जो एम कहेशो के, | शरीर धर्मनुं कारण ले. तेथी अध्यात्मनो विरोधी नथी. त्यारे धर्मोपकरण पण | धर्मनां साधन होवाथी अध्यात्मना विरोधी थाय नही. ए सामान्यपणे उत्तर कयुं. न कोई एवी आशंका करे के ज्यांशुधी उपधि होय. त्यां शुधी सर्वथा अ ध्यात्मनी सिदि थाय नही तेनुं मत दूषित करेजेः- ॥४॥ वधिसदिओ ण सिसइ, सतुसा जद तंउला न सिशंति॥ श्य वयणं परिकतं, दूरे दितवेसम्मा ॥५॥ व्या:-उपधिसहित जीव सिक्ष्ताने पामे नही. जेम तूससहित चोखो सीके नही, तेम जाणवं. जेम चोखाने तूस दोषरूप ले, तेम उपधि जीवने दोषरूप बे. एवं वचन अमरचंद नामना दिगंबरनुं जुउंज नारख्यु डे, माटे ए दृष्टांत स मीचीन नथी. केमके, चोखाने तुसरूप दोष ते स्वरूपथकी : अने जीवने न पधिरूप दोष स्वरूपथकी नथी. जीवने उपधिरूप दोष जो स्वरूपथी होय, तो पक श्रेणीए चढेला यतिना स्कंधउपर वस्त्र नाखिये तो तेने केवलज्ञान उत्पन्नथ, न जोये. अने तूससहित वस्तु सीके नही. ए पण सर्वथा संजवित नथी. केमके, मुग प्रमुख तूससहित सीतां दीवामां आवेळे. माटे ए पण एकांत नथी, अनेकांत . ___:- परवादी जे दोष उपधिनेविषे कहे, ते दोष शरीरने विषे पण संनवे लेते देखडावे ः-॥ ५ ॥ जा उबगरणे मुन्ना, आरंनो वा असंजमो तस्स ॥ तह परदवम्मि रई, सा किम तुहं सरीरवि ॥६॥ व्या:- जो एम कहेशो के, उपधि राख्याथी मूळ थायले. त्यारे शरीरकपर केम मूळ थती नथी. उपधिनी मूळ तो शरीर मूर्नानिमित्त . तेथी शरीरने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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