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श्री प्राचीनस्तवनावली .
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॥ ढाल ६ ठी॥ जहां प्रतिमारे देवतारे, फूल फूल वर्षावेरे। सरस सुगंध सोहामणो, जोजन फूल विछावेरे। पग देतो पीडा नहीं होवेरे, जिनवर अतिशय पर भावेरे। फूल पगर अमर कीजियेरे,वारमी पूजासोहावेरे॥१॥ दर्पण भद्रासन भणेरे, नंदावत परधानोरे। पूरण कलश अम झगमगेरे श्रीवत्सने वर्द्धमानो रे ॥ आठमा मंगल साथीयारे, जिनवर आगल कीजेरे। इण परे पूजा तेरमीरे, नरभर लावो लीजेरे ॥कृष्ण अगर उखेवणारे। धूप करो सलारस धूपनोरे, चवदमी पूजा सोहामणीरे ॥२॥ श्री जिनवर गुण गाइयेरे, सुंदर रस कलश रूपसता सुर नर तास जीव पंदरमी पुजा अमोल हवे नाचे देवांगणा सजि सोले सिणगार । गमगम वाजे घूघरा, पायें नेवर झणकार ॥३॥ चन्द्रमुखी इणपर कहे,नाटक भेद बतीस । खइखई शब्द सोहामणो, गावे राग छत्रीस ॥४॥ सोलमी पूजा सुणो हवे,वाजा वाजत मृदंग।