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श्री प्राचीन स्तवनावली
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॥रात्री भोजननी सज्माय । रात्री भोजनमें दूषण घणा, कूडो कयो न जाय । तिण अणसारू इम कह्यो, सांभलजो चित्त लाय ॥१॥ ढाल पेली॥ छठो व्रत रयणी तणो ए भोजननो परिहार करे कोई मानवीये। होजावे खेवा पारके । व्रत आराधीये ए॥२॥ साज पड्यां भोजन करे ए। दिन आथमते सुर ॥ केवलीयां ईम कयोए ॥ साधपणेसु दूर के ॥ व्रत०॥३॥ कागादिक सहु पंखीयाए। रात रान चूंगवा नहीं जायके॥ आंधो भोजन रातरो ए । भला माणस किम खाय ॥ व्रत० ॥ ४॥रयणी भोजन करता थका ए।सु माछर पड जाय। कीडी ने कुंथवो ए । रातरी खबर न चार के ॥ व्रत० ॥५॥ रयणी भोजन करता थकाए, मकड़ीरो रायतो खाय के॥ गलत कोढ नीकलेए ॥ गलत थकी मर जाय के ॥ व्रत०॥६॥रयणी भोजन करता थका ए, दया नहीं दिल मांय ॥ नाना कोइ जीवड़ाए, मुखसे काढ्या नहीं जाय के ॥व्रत०॥७॥रयणी भोजन करता थका ए, मन भावे सो खाय के व्रत एको