Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Mannalal Mishrilal Chopda
Publisher: Mannalal Mishrilal Chopda
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१३६] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली भाव ॥श्री०॥६॥ पारसनाथ हो तुझ प्रसादथी, सईहणा मुझ एह । भवभव देजो हो समयसुन्दर कहे, जिनप्रतिमासु नेह ॥ श्री०॥७॥
त्रिशलानन्दनकी खुली दुकानजी तुम माल खरीदो ॥ सूत्ररूप भरी बहु पेटी यासरे, मुनिवर बड़ा वैपारी । तरण तारणका माल दिखावे, करे अपना दिल राजीजी ॥ तुम० ॥१॥ जिनवाणीको गज हे सांचो, जरा फरक नहीं जाण । नाप नाप ने दे सत्यगुरूजी, नहीं करे खेंचाताणजी ॥ तुम० ॥२॥जीवदयाकी मलमल भारी सुह मन मिसरू लीजे। उबल झीण समता तणो सरे, जो चाहिये सो लीजोर ॥ तुम० ॥ ३ ॥ तपस्या को बंदागर भारी । साडिया सन्तोष । एसा काम करो जिणा सुं चेतन पावे मोक्षजी ॥ तुम० ॥ ४॥ माल वीके थोड़ो जिससे, सस्तो पुरीयो न जाय । आपेगा उत्तम प्राणी, माल हमारा ले जायजी ॥ तुम० ॥५॥ माल वीके तो रहना होसी। सुणजोभवि

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