Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Mannalal Mishrilal Chopda
Publisher: Mannalal Mishrilal Chopda

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Page 157
________________ १४२] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली सुगुरु मे रतनमुनि गुण गाया॥ सुमति सदा गुरु चितवसे, कुमतिभगे अति दूर । तीन करनको रोकते हो, दिव्य नाण भरपूर ॥ सु०॥२॥ खल मित्र गुरु आप सदा, करुण रसभंडार । पर उपकार सु शीलथे चरण रतन अवधार ॥ सु० ३॥ सायर समगम्भीर गुरु, दर्शन निर्मल धार । बह्मचर्य गुरु धारते, महिमा अपरंपार ॥ ४ ॥ गगन समो गुरु निर्मला, रवी समतेज विकाश ।शशि समानमुख सौम्य छे, मणि जिम दीपे खास ॥५॥रत्नगुणासे सोभते, आतम मार्ग में लीन । कर्म वृन्द को तोड़ ते हो के मोक्षाधीन ॥६॥ जीवा जीव विचारमें, निपुण रहे गुरु राज। सकल वस्तु विज्ञान हो गुरु, दीर्घ बुद्धि मुनिराज ॥७॥ महा दुष्ट रिपु काम को छिनमें दीया हटाय।रतिकीकुमति निरासकीधन्य वैरागी राय ॥८॥ हानी कर्ता अकार्य को, नष्टकी, ये तत्काल दूर हटाय दुष्टको, मोह महा विकराल ॥९॥ राग रहित वैराग्य में रमण कराहो नाथ त्रिविध योगसु, दमन करी सुमती सखी के साथ

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