Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Mannalal Mishrilal Chopda
Publisher: Mannalal Mishrilal Chopda

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Page 159
________________ १४४] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावलो दयाप्रतीपालटोलालेयम्हारा सुसराजीबीवहारीयारे म्हारे, घरमे टकारी जोड़ ॥टो० ॥ लेवे सोनो रुपो अति घणोरे म्हारे मुकट घणा वणरो कोड ॥ टो०॥ रुपया तो म्हारे घरे घणारे म्हारे पुस्तक लेवारो कोड॥टो०॥ हस्ती घोड़ा हीसणारे मोतीड़े जड़त पलाण ॥ टो० ॥ लेय जे चड़ जुहारसिंहजी जोवीयारे म्हारे नगरीमें बहुत सुगाल ॥ टो०॥ लेय घी पांरी रे लाबु आरे दूधे बुट्टा मेह ॥टो॥ लेये पानज पाटणनीपजेरे म्हारे सापारी अजमेर ॥ टो० ॥काथो नीपजे मेड़तेर म्हारे म्हारा रे रंग खरतरगच्छ होय ॥ टो०॥ इंगरिया हरिया हुआरे म्हारे, एक बड़ी हारीदार ॥ टो० ॥ लेवे दुकडिये मण वाजरीर म्हारे, छकड़ीये मण जुवार ॥टो०॥ कोला भरसा वाजरीरे म्हारे घर भरसां जुवार ॥ टो०॥ इतिश्री प्राचीनस्तवनावली समाप्तः। 454155KSESSA 5414545454545

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