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श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [१३५ निषेधजी। अढी कोश ऊंचा गिरि जावान, कल्प सूत्रे वीरे कीधुंजी ॥ १॥ ___श्रीजिन प्रतिमा हो जिन सारखी, कहिए दीठा आणंद । समकित विगड़े हो शंका कीजतां, जिम अमृत विषवृन्द ॥ श्री०॥१॥ आज नहीं हो कोइ तीर्थकर इहां, नहीं कोई अति शयवंत। श्रीजिन प्रतिमानो एक आधार छे, आपे मुक्ति एकंत ॥ श्री०॥२॥ सूत्र सिद्धान्त हो तर्क व्याकरण भण्या, पंडित पिण कहे लोक । श्रीजिन प्रतिमाने जे माने नहीं, तेनो सघलो फोक ॥श्री० ॥३॥ जिनवर प्रतिमाने आगे नमोत्थुणं कहे, पूजा सतर प्रकार । फल पिण छोल्या हो हित सुख मोक्षना, द्रौपदीने अधिकार ॥श्री०॥४॥ रायपसेणी हो ज्ञाता भगवती, जीवाभिगम मांझ। ए सूत्र माने हो प्रतिमाने हो प्रतिमा माने नहीं, माहरी माने वाझ ॥ श्री० ॥५॥ साधुने बोल्या हो भावस्तव भला, श्रावक ने द्रव्य भाव । ए बेह करणी हो करता निस्तरिया, जिन प्रतिमा पर