Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Mannalal Mishrilal Chopda
Publisher: Mannalal Mishrilal Chopda

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Page 148
________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . [१३३ प्राण मद्यस्य पादं ॥ भुवि भविकज बोधे, यः सदा सूर्य तुल्यः । स भवतु जिन चन्द्रो मुक्ति सौभा ग्य दाताः ॥८॥ . ॥ नाकोड़ा मंडन श्रीपार्श्वजिन स्तवन । प्रभु पार्श्व देख हुलसाया, मैं नगर नाकोड़े आया । तुम नाम अनेक प्रभु धारे, मक्सी गोड़ी पास प्रभु प्यारेरे मैं नगर०॥ प्रभु०॥१॥ हस्ति देवगति पद पाया, कलिकुंड तीर्थ धपवाया । जगन्नाथ जीरावली राया, शंखेश्वर नाम धरायारे, मैं नगर०॥प्रभु०॥२॥ जरासंघकी जरा निवारी, हुए कृष्ण जयजयकारी। थंभणपुर स्वामी नामी, भविजन मनके विसरामीरे, मैं नगर०॥प्रभु०॥ ॥३॥ योगी नागार्जुनने ध्याया, वो कंचनसिद्धि पाया । श्रीमद् अभयदेवसूरिराया, प्रभु स्तवने कुष्ट मिटायारे, मैं नगर० ॥प्रभु० ॥४॥ अव इतनी अरजी मेरी, प्रभु ! लीजिये आप सवेरी। जिन केशर शरणे तोरे, मिटादो भवके फेरेरे, मैं नगर०॥प्रभु पार्श्व०॥५॥

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