Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Mannalal Mishrilal Chopda
Publisher: Mannalal Mishrilal Chopda

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Page 144
________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [१२९ ए। सु० ल० ॥ २९ ॥भाभीको देवरीयो लाड़लो, कांइ० लावे लावे फूल अपारए। सु० ल० ॥३०॥ ज्ञान गुमानी म्हारो देवरियो, थें तो फूल कठासुं लायोए । सु० ल०॥ ३१ ॥ शील सुहागण म्हारी भाभीजी, कांइ म्हेंतो फूल वागाथी लायाए । सु० ल० ॥ ३२ ॥ ज्ञान गुमानी म्हारो देवरियो, थें तो फूल किणहीने देसोए। सु० ल० ॥ ३३ ॥ सुमति सोहागण म्हारी भावजी, कांड में तो फूल दादाजीने देसाए । सु० ल० ॥३४॥ नरनारी ए लहेरयो गावसी, कांइ स्वर्गा सुख अति पावसीए सु० ल० ॥ ३५ ॥ भवि जीव ए लहरयो गावसी, कांइ भव भव उतरे पारए । सु० ल०॥३६॥अती रंग लहेरथो भींजीयो, कांइ गावे सुने सुख पावेए । सु० ल०॥ ३७॥ लहेरथो सरस गाइयो, काइ विजय हुवो परतापए । सु० ल० ॥३८॥ संवत अठारे तेपने कांइ वैशाख सुदि एकम रवीए।सु० ल० ॥३९॥ कल्याण क्षमा विनवे, कांइ उदयपुर रही चौमासए । सु० ल०॥४०॥

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