Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Mannalal Mishrilal Chopda
Publisher: Mannalal Mishrilal Chopda
View full book text
________________
श्री प्राचीनस्तबनावली . . . . [१२१ कल्याण अपारजी ॥ नीच निंद्य अकल्याणक भूत मानी, किम बांधु कर्मनो भारजी। जिन आशातना अवगुण बोले,श्रीजिन चन्द्रशासन दूरजी ॥४॥
reason
समाय नगरी द्वारिकामा नेमि जिनेश्वर, विचरतांप्रभु आविया।कृष्ण नरेश्वर वधाइ सुणीने, जीत नगारा बजराव्या प्रभुजी नहीं जाउं नर्कनी घर नहीं नहीं जाउं नर्कनी घेर ॥१॥ सहस्र अट्ठारे साधुजी विदीसुं, वाद्यां अधिक हरखे। पछे नेमि जिनेश्वर केरा ऊभा मुखड़ा निरखे ॥प्रभु०॥शा नेमि कहेरे तुमे चार निवारी, तीन तणा दुःख सहा कृष्ण कहेरे हुँ फरी फरी वंदु, हियडे हर्ष घणेरो ॥प्रभु० ॥३॥ नेमि कहे तुम टाल्या न टरसे, मानौं ते एक वात ॥ कृष्ण कहे मारे बाल ब्रह्मचारी, नेमि जिनेश्वर भ्राता ॥प्रभु०॥४॥ पेटे आवीयो ते

Page Navigation
1 ... 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160