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१२०] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली फल कल्याण सुपने, बे माता इन्द्रादि सह मान्या जी ॥ नीच उच्च बे गोत्रे अच्छेलै कल्याण जे तें किम कहुं अकल्याण जी। कल्याण जे उच्च गोत्रे ते नीच विपाक निंद्य, कही किम था', अकल्याण जी॥१॥ सर्व जिन माता कुंखे, जब आव्या, 'क मन्ने कल्लाऐं फलमान्या जी। कल्याण ते श्रेय सुख समृद्धि पुत्र लाभ, सुपने पाठके दिखलायाजी ॥ राणी राजा इन्द्रे सर्वे तिम मान्या, श्रुत केवली भद्रबाहुएजी। कल्पसूत्रपंचाशके जिन गर्भ धारण, कल्याण श्रेय बतावेजी ॥२॥ श्री जिन पडिमा पूजा भारवी, ऋतुवंती नहीं पूजे नारजी। धन हाणी काया रोग इह भवे होवे, शासन मलिनता कारजी ॥ जिन अंग पूजती, ऋतुवंती थाय जे, करे देव प्रभाव निसारजी। ते स्त्रि न पूजे, देवाधिष्ट मूल बिंब, जे शासन उन्नति कारजी ॥ ३॥ वीर शासन सिद्धायिका देवी, सुरगण करे सदा सारजी । कीर-कल्याण श्रेय गुण गण गातां, श्रेय फल