________________
~~
८०] . . . .- श्री प्राचीनस्तपनावली सहे ॥ जो० ॥२॥ साहिषने अमची खपका नहीं है, पिण छे गरजः अमारे हे। जोसाचीसी भगत कहाविवेहे, तो भवजल निध तिर हे ॥ जो० ॥३॥ साजनीया पिण दूर गजे दिये हे, तिण थकी दूर रहिजे है ॥जो छोड़ावे गभावासती है, तिणसु सकनिमीलीजे है ॥ जो० ॥४॥ नाम जपीजे श्री चन्द्रयाहुनो है, निश दिन ध्यान धरीजे है। तेस लहीजे करी जिनराज नोहे, जिणकर लेख लिखीजे है। जो॥५॥
॥ ढाल १४ चउदमी।। ॥ आबु शिखर सुहामणो, ए देशी ॥ स्वामी भुजंग मताहरो, नाम जपे सहु कोइ। पिणः तेहनी पर ते तजी, तिण मुझ अचरिज होइ ॥स्वा ॥१॥ तुं सपगोपग रोपने, चढे बोल प्रमाण। आगम वचन तुं चले, न चले हिया त्रांण ॥.स्वा०॥२॥तुंगयवर गति चालतो,न धरे तिल भर वांकः। मोर गरूङ सेवा करे, नाणे केह निशंकः