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श्री प्राचीनस्तवनावली . . . : ९९
॥ श्री सिद्धगिरिराजनो लघु स्तवन ।
चालो मोरी सहियाँ श्री विमलाचल है। जिहां श्री ऋषभजिणंद हे। पूर्व नवाणुवार, समोसरथा है । केवलज्ञान दिणंद है ॥ चा०॥१॥ शुद्ध तत्व रसीया बहु मुनिवरू है, किध अयोगी भाव हे ते संभारी नमता नीपजे है। निरमल आत्म स्वभाव है। चा०॥२॥पांच कोडीथी मासी अणसणे है, पुंडरीक मुनिराय है, चैत्री पूनम सिद्ध थया तिणे है, पुंडरीक गिरि कहेवाय है ॥ चा०॥ ॥३॥ विधिसुं जे सिद्धाचल भेटसे है, करी उत्तम परिणाम है। नीमा भव्य कह्यो ते जिणवरे है, ए तीरथ अभिराम है ॥ चा० ॥ ४॥ सुरनर किन्नर गुण गावे मुदा है, प्रणमे प्रहसमे, रीझे है। देवचन्द्र ए तीरथ सेवता हे, सकल मनोरथ रीझे है। चा०॥५॥