Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Mannalal Mishrilal Chopda
Publisher: Mannalal Mishrilal Chopda

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Page 121
________________ १०६ ] श्री प्राचीनस्तवनावली ॥ अथ बारे व्रतनी सिज्झाय ॥ गौतम गणधरजीरे पाँय नमीजे, सद्गुरूजीरी वाणी काने सुणीजे ॥ " इणिपरे श्रावक बारह व्रत लीजे " ॥ लीजे लीजे ने जिनवर पूजीजे ॥ बारह व्रतनी टीप लिखि जे ॥ इणि० ॥१॥ पहिले जीवदया पालीजे ॥ तो निरोगी काया पामी जे ॥ इण० ॥ २ ॥ दूजे मृषा झूठ न बोले, तोछतो अछतो आल न दीजे ॥ इण० ॥ ३ ॥ त्रीजे अदता चौरी न कीजे, तो पडि वस्तु हाथे न लीजे ॥ इण० ॥ ४ ॥ चोथे चोखो शील पालीजे, तो रत्न पावड़ाये मोक्षपद लीजे ॥ इणि० ॥ ५ ॥ पंचमे परिग्रह परिमाण कीजे । तो पांचे इन्द्रिय पोते वश कीजे ॥ इण० ॥ ६ ॥ छेट्टे दिशिनी मर्यादा कीजे, तो छः कायजीवाने अभयदान दीजे ॥ इणि० ॥ ७ ॥ सातमे भोगोपभोग कहिजे, तो छति समर्था आहार तजीजे ॥ इणि० ॥ ८ ॥

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