Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Mannalal Mishrilal Chopda
Publisher: Mannalal Mishrilal Chopda

View full book text
Previous | Next

Page 130
________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [११५ जातीडा जातीड़ा जिनदर्शन सुख कंदोरे । हारे एतो टाले भवनो फंदो-जातीडा जिनदर्शन मत निंदोरे ॥१॥ अमे जयणाथी इहां जासुरे, प्रभु आणाने दिल मांहे धरसुंरे । हारे तेथी आराधक अमे तरसुं ॥ जातीडा सिद्धगिरि चौमासु करियरे ॥ २॥ अमे जिनदर्शनना रंगीर, ढकना नहीं संगीरे । हारे किम थइये जिनदर्शनना भंगी॥ जा० ॥३॥ वषाले गिरि मुनि जावेरे । कोश अढी श्रीवीर फरमावरे । हां रे कल्पसूत्र विरुद्ध किम कहावे ॥ जातीडा० ॥ ४ ॥ सिद्धगिरि जिन दर्शन सारूंरे, एतो लागे मुजमन प्यारूंरे । हारे जिनदर्शन 'जिनचन्द्र' तारूं ॥ जा०॥५॥ ॥ स्तवन ३ जुं॥ सिद्धाचल दर्शन करवाने, मनडु उमायुं मारुं भविजन भवजल तरवाने-ए देशी ॥ चौमासु सिद्धाचल करसुंजी, तलाटी मंदिर दर्शन करीने पावन थांसुजी ॥एआकणी ॥ आदि

Loading...

Page Navigation
1 ... 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160