Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Mannalal Mishrilal Chopda
Publisher: Mannalal Mishrilal Chopda

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Page 93
________________ ७८] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली साहिब चतुरसुजाणरे। जे हुं भगत कर सते जाणस्येरे, वज्रधर केवलनाण प्रमाणरे ॥ ए॥१॥ दूर थकी पण जो साचे मनेरे। समरण करस्युं वार विचाररे॥ तो पिण ते अहिलो जास्ये नहींरे, फलस्ये भव २ प्रकाररे ॥ ए०॥२॥अंतरगत अंतर जो मिलेरे, ते प्रभु साचो सुखनो बीजरे। जे गुणने अवगुण जाणे नहींरे, तेस्युंकरवो निशदिन धीजरे ॥ए०॥३॥ चूक पडे जो किणही वातनोरे, तो पिण न धरे तिलभर रीसरे। तूसे पिण कदयें रूसे नहींरे, ए मुझ प्रभुनी अधिक जगीश ॥ ए०॥४॥ ते तो कहिये नाहिन कीजियेरे ॥जेहने आठे प्रहर अंधेररे ॥श्री जिनराज अवरसू मिढतारे ॥ मेरू अने सरसवनो फेररे ॥ ए०॥५॥ ढाल १२ बारमी ॥ वैरागी थयो ए देशी॥ समाचारी जूजईरे, आवे मन संदेह । सीसा

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