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श्री प्राचीनस्तवनावली
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होय जसु संजोग । धर्म तणो उपदेश प्रवर्ते, विघ्न वियोग ॥ १० ॥ कोश वृद्धि पूजादिक, तिहां करके शुभ काज । अनुक्रम विमलाचल गिरि, आया संघ समाज ॥ हाथी घोड़ा रथ बहु, पयदल करत अवाज ॥ संघ तणी रक्षा करे, भय जावे सब भाज ॥ ११ ॥ दूर थकी गिरि देखके, माणिक मोती मेह | संघ सहित दुप संघ पति, वधावे गुण गेह ॥ तलहटी यात्रा ओछब करी, फरस्या श्री गिरिराय । ऋषभ जिनन्द जुहारिया, आनन्द अंग न माय ॥ १२ ॥ आज भलो ऊग्यो दिन, प्रगट्यो सुकृत आज । आज जन्म सकलो भयो, भेट्या श्री गिरिराज । विविध परे जिनराजकी, पूजा करी उछरंग। गुरु भक्ति साहम्मी वच्छल, करी हर ख्यो संघ ॥ १३ ॥ अंबा चक्केसरी गोमुख, कवड जक्ष सुपसाय । मनह मनोरथ सब फल्या, संघतणा सुख दाय ॥ भावशुद्ध करी ए गिरि, फरस्ये जे नरनार । नरकादिक दुर्गति नहीं, पावे ते संसार ॥ १४ ॥