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श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [३९ सुर करेरे लाल। पूजा विविधप्रकाररे सो०॥श्री० ॥ १० ॥ भुंगल भेरी अंत घणारे लाल। लावे छे नवी नवी रीतरे सो०। इन्द्र ता ता थई नाचियारे लाल। इन्द्राणी गावे छे गीतरे सो०॥श्री०॥११॥ इणंद नणंद मिली करीरे लाल, ले गया माताजी के पासरे सो०। राजाजी महोत्सव मंडावीयारे लाल । दे दे दान अपाररे सो०॥श्री०॥१२॥हस्ती " तो दीना राजा घूमतारे लाल। ऊपर लाल अंबा डरे सो० । घोडा तो दीना राजा हीसणारे लाल। मोतीय जडित पलाणरे सो० ॥श्री०॥१३॥सोनो तो दिनो राजा सोभणोरे लाल। रूपा को अंत न पाररे सो०। मोती तो दीना राजा ऊजळारे लाल। श्रीफल तंबोल अपाररे सो० ॥१४॥ थालां तो दीनी राजा ऊजलीरे लाल।दीनी दीनी कनक कचोलरे सो०। मोती तो दीना राजा मोजरारे लाल । दीनी दीनी पंडिताने सीखरे सो०॥ श्री० ॥ १५॥ राजलीला सुख भोगीयारे लाल । भोगता भोग विलासरे सो० । वैरागे मन वालियारे लाल।