Book Title: Prachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 637
________________ ६२२ Jain Education International प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह कवणह केरा तुरंगम हाथी, कवणह केरी नारी, नरगि जाता कोई न राखई, जोओ हीइ विचारी. १०५ धर्म्मविहून सुख विआणिइ, परघरि पाणी इंधण आण, खंडइ दलइ करइ करि लोडण, तहवि न पावइ किंचिवि भोअण. १११ दम्मा एव सुलखणा, मणवंछिअ पूरंति, अछइ पछीआ[पठीआ] पंडीआ, कचपच [ गलफल] करी मरंति. ११४ हो कहवि न किज्जइ, अह किज्जइ रयणकंबल सारिखो, अणवरइ धोवमाणो, सहाव-रंग न छंडेइ. १२६ नेह मांहि खटुक्कडु, मुझ मनि खरु सुहाईं, मिरीच मुक्का [मक्का ] बाहिरी, खांड न खाणी जाई. १२७ दव - दद्धा खड पल्लवइ, जिम वुट्ठेण घणेण, विरह - पत्तिह माणसह, तिम दिट्ठेण बहुत खरा न बोलीइ, तालू सूकइ एक ज अक्षर बोलीइ, बांध्युं छूटइ खेड म खूंटा टालि, खूंटा विण दैव तणइ कपालि, साहस केरुं सीह न जोइ चंदबल, नवि जोइ एकल्लु बहु आभडइ, जाहा साहस जे गलि गलइ उअरं, अहवा न गलइ गलित्तं नयणाईं, अह विसमा कज्जगइ, अहिण छछंदरी गहाय. १७९ मरणह केरु कवण भय, जेणि वट्टइ जग खींख हल वहइ. १७३ धन [घण] रद्धि. तां सिद्धि. १७४ जाइ, डोलाईं. १९४ लेउ, करेह. १९५ पिएण. १४९ जेणि, जेणि. १६५ नहीं, मन मइलू, न संबलू, हयडूं तेण जिहां - बिपुरह- मग्गडउ, तिहां जीव संबल जिहां चउरासी भवभमण, तिहां विलंब उपरवाडइ हाथ, झाबक दी यम तणु, नवि संबल नवि साथ, घडी मांहिं गामंतरु. १९६ सुकृत संचि करि जे मरइ, ते तिणि वारि निशंक, मरणह बी बापडा, धर्म ज मूंक्या रंक. १९७ सू आं खडहडिउ, तलइ खाधु घण, तुहइ कोइलि सर करइ, ते आगलि गुणेण २०० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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