Book Title: Prachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 701
________________ ६८६ अज्ञातकृत प्राचीन थेरावली (हिमवंतनी स्थविरावली प्राप्त थई छे एम जणावी ते परथी पोते कलिंग चक्रवर्ती खारवेलनु केटलुक वृत्तांत पंडित हीरालाल हंसराजे गुजरातीमां अंचलगच्छनी मोटी पट्टावलीना पुस्तकमां आप्युं छे अने ते सर्व मूल स्थवीरावली परथी निष्पन्न थतुं होय तो घणो ऐतिहासिक प्रकाश पाडी शकाय तेम छे; परंतु दुर्भाग्ये पोतानी हमेशनी रीति मुजब पंडितजीए मूल हिमवंतनी स्थवीरावली आपी नथी. ने पंडितजी स्वर्गस्थ थई गया छे. आ थेरावली कच्छना एक भंडारमाथी प्राप्त थई हती तेथी त्यांथी मळी शकशे एवं जणाववामां आवतां ते माटे प्रयास साक्षर मुनिश्री कल्याणविजयजी अने पंडित सुखलालजी करी रहेल छे. ते मळशे के नहीं ए मोटो सवाल छे, पण मूळ परथी हीरालाल पंडिते लखेलुं छे एम स्वीकारी मुनिश्री कल्याणविजयजीए मोटा हिंदी लेख लखी 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' मां प्रगट करेल छे. हिमवंतनुं नाम अहीं आपेली थेरावलीमां गाथा १४ अने १५मां आवे छे; ते ज हिमवंत पंडित हीरालाल जे हिमवंतनी स्थविरावली जणावे छे ते होय के न होय तेनो निश्चय ते प्राप्त थाय तो थाय. आ प्राचीन थेरावली तेमां कंईक प्रकाश नाखी शकशे एम धारी आ जोके संपूर्ण शुद्ध स्वरूपमा नथी छतां बने तेटली शुद्ध करी अत्र आपी छे.) । ९०. सुहम्मं अगिवेसाणं जंबूनामं च कासवं, पभवं किच्चायणं वंदे वच्छं सिज्जंभवं तहा. १ जसभदं तुंगियं वंदे संभूयं चेव माढरं, भद्दबाहुं च पाइन्नं थूलमदं च गोयमं. २ एलावच्छस्स गुत्तं वंदामि महागिरिं सुहथिं च, तत्तो कोसियं गुत्तं बहुलस्स सरिवयं वंदे. ३ हारियगुत्तं साइं च वंदे मोहा[ह?]रियं च सामन्नं, वंदे कोसियगुत्तं संडिलं अजिय जीयधरं. ४ तिसमुद्द खाय कित्तिं दीवसमुद्दे सुगहिय पायालं, वंदे अज्ज समुदं अखुभिय समुद्दगंभीरं. ५ भणगं करु[र ?]गं उरगंए [प]भावगं नाणदंसणधराणं, वंदामि अज्ज मग्गं सुयसागरपारगंभीरं. ६ वंदामि अज्ज धम्मं वंदे तत्तो य भद्दगुत्तं च, तत्तोय अज्ज वयरं नवनियमगुणेहि वयरसम. ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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