Book Title: Prachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 707
________________ ६९२ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह संधिविग्रहपदे दूत कंपतो द्विजा त्वा द्रस्या बहवोपि मालवपते ते संति तत्र त्रिधा. प्रेक्षते अधममध्यमोत्तम तया संप्रेक्ष राज्ञागणं, तेनांतर्गतमुत्तरं च दधते धारा-धरो रंजित: ४ भोजराज गुजरदेशोपरि कटक करोति. नाटकोवसरि प्रधानेनोक्तंभोजराज मम स्वामी यदि कर्णाटभूपते, कथा कष्टं न पश्यामि कथं मंज सिर करे. ५ अथ मुंजकथा : सुविहाणं तिहि मंतीय जहं जे बुडि ज गोला माहि. मंजम दिठउ विहतीउं रिद्धि न दिठ खलाइ. सगढी करि मंत्रणूं महार दाइ वत् विण, भीख मगावी जिम मंकड तिम मुंज. मोगोलणि गच्छ करि देखवि पट्टु रूयाय चऊद सयत्थ. रे रे संकड मा रोदीय दिहं खंडि तोऽनया, राम रावण लंक द्यो घेनरू खंडितो स्त्रियां. अयं कटी मत्तगजेंद्रगामिनी, विचित्र सिंहासन संस्थिता सदा, अनेकरामाजघरेण लालिता, विधिवशाद वनकर्पटीकृता. १० तदा भोजने कर्णाट देशे कटक कृता स नर्जयत्वा स नगरे समेत रात्रौ नष्टचर्यां खिप न क्वचनं श्रुतं. Jain Education International तीक्खा तुरीय न माणया, भडसिरि खग्ग न भग्गं, जंवारू नग्गवि गयउ ११ भोजराजे खिपनक परणावित. गूजरदेशे कटकै कृत. पत्तनं भूसयित्वा चलित. तदा मालिकाचार्य पृष्ठे मिलित. कंडोरि कुरर क्षत्रि अरिजनना करि ऊडीया, मात्रीणी त्रीजिने त्रिसड सडसडइ भागा पोलि पगार मुनिश्वर पणि भजे पुनही, भीमड जोइ विचार. खमणउ भलउ के सेवडउ. १३ पश्चात भीमराजेन मालवोपरि कटकं कृत. भोज भग्नः धार धधोलि तत् सदा चारणेनोक्तं ७ ζ — ९ For Private & Personal Use Only वारि, भोजराज भीमेण सिउंप्यं जिम वारो घोडा खर रजिअणीय भरि धंधोलि सिजि धार. १४ सेवडउ. १२ www.jainelibrary.org

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