Book Title: Prachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 722
________________ शब्दार्थ ७०७ क्षेप) खवास १२१.२७ सेवक, हजूरिया (फा.) | खूनकारक २८.४ जुलमगार, क्रूर कर्म करनार खंच २३३.२ खचकाट खूप ७०.१९ माथा पर फूलनो एक शणगार, खंडोखलि ७६.२० क्रीडा माटेनी नानी वाव, होज | शेहरो (दे. खुंपा) खंडोखंडि ६.१३ टुकडेटुकडा, चूरेचूरा | खेचर ५१.८ आकाशगामी देव के देवकल्प योनि खंति ८६.२ होंश, इच्छा अभिलाषा (सं. क्षान्ति) | (सं.) खंध २७६.८, २७६.९ खांध, खभो (सं. स्कंध) | खेत १३४.१६ क्षेत्र, प्रदेश खंध ६५.२६ स्कंध, खभो खेमि ५१.४ सुखेथी, सरळताथी खंभ ६७.१७ स्तंभ, थाभला (सं. स्कंभ) खेर २८.११ कुशळ (अ. खैर) खाम-४.२७ क्षमा मागवी खेला ८०.२३ खेल करनार, नट खास १२१.२७ विशिष्ट, चुनंदा (फा.) खेलामंप २३०.२८ क्रीडामंडप खासत २६०.२८ खेव १६०.२१ तरत ज (सं. क्षिप्र) खांच-९१.२ खेंचर्बु (प्रा. खंच) १७५.१९ खेंचीने खेव-२३५.१३ नाखवू, फेंकबू, मोकलवु (सं. राखq खांडा १६५.१९ तलवार (सं. खड्ग) खेव ५६.२० जलदी (सं. क्षिप्र) खांति ८०.२५ होंश, उत्साह (सं. क्षान्ति) खेह १६३.१ धूळ खिजमत १७०.२६ खिदमत, सेवाचाकरी खोडि, खोडी ६१५ खोड, दोष, कलंक खिण ८९.१२ क्षीण, कृश २२१.१२ खामी, खोट १९५.२३ क्षति, हानि, खिण जुओ इणि खिणि विपत्ति खित्तवाल २२२.१९ क्षेत्रपाळ खोभाव-१४८.७ क्षुब्ध करवू (सं. क्षोभय) खिमा ४.२६ क्षमा ख्यात ८८.२६ कीर्ति, पराक्रमगाथा खीज-५३.१५ दु:खी थर्बु, खेद पामवो (सं. | ख्याल १३८.१५ क्रीडा, रंगराग खिद्य) ख्याल ८७.१९ गम्मत, क्रीडा खीर ८१.२० दूध (सं. क्षीर) गइण २५४.१९ गगन, आकाश खीर-निहाण ६४.१६ दूधनो भंडार (सं. क्षीर- । गइंद ५५.२६ गजेन्द्र हाथी निधान) गउरव ५५.६ वरनुं संमान करवा कन्यापक्ष खीरसागर ६४.२९ क्षीरसागर, ए नामनो सागर तरफथी अपातुं भोजन खीरोदक २३०.१६ सफेद रंगनुं एक जात, गजगेल १३९.१४ गजगति, गजगामिनी रेशमी वस्त्र (सं. क्षीरोदक) गजवडि ११०.२० हाथीनी नानी नानी भातवाढू खुन २८.६, २८.१८ वस्त्र (सं. गजपटी) खुरासाणीआ ७३.१६ खुरासानना, घोडानी एक | गडगडंत २७१.९ गाजतुं, प्रसिद्ध जात गण-३८.२८ पुनरावर्तन करवू (सं. गुण) खुसफहिमनुसीका २७२.२८ गण १९६.२३ गणि, जैन साधुनुं एक पद खूणालउ ७०.१९ खूणावाळो, वांको ? (सं. | गणगोर १९.२६ कोण) गणती ४०.१२ गणना, गणतरी खूट-११०.५ खेंची काढवं, तोडधं (दे. खुट्ट) गणहर २०३.१९ गणधर, जिनदेवना प्रथम शिष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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