Book Title: Prachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 682
________________ अज्ञातकृत सीमंधर स्वामी स्तोत्र ६६७ करजुयल जोडि करि वयण तुं निसुणिसो, बाल जिम हेल दे पाय तुम्ह पणमिसो, महुर सरि तुम्ह गुणगाहण हउं गाइसो, निय नियण रूव रोमंचियं जोईसो. १४ तुम्ह पासे ठिओ चरण परिपालिसो, हणीय कम्माण केवलसिरि पामिसो, तुम्ह जिण नियई करू सिरसि संठविसउ, सो वि कईया वि मू होइसई दिवसउ. १५ भरहखित्तंमि सिरि कुंथु-अरू अंतरे, जम्म पुंडरगिणी विजय पुखल वरे, मुणिसुव्वइ तित्थि नमि अंतरं अहिजुया, रज्ज सिरि परहरवि गहिय संजम तया. १६ हणिय कम्माणि लहु लद्ध केवलसिरी, देहि मे दंसणं नाह ! करूणा करी, भाविए उदय जिण सत्तमे सिव गए बहुय कालेण सिद्धिं गए सामीए. १७ मोह(भ)र मानभर लोभभर भरियउ, दंभभर रागभर कामभर पूरिउ, एह परि भरहखित्तंमि मूं सामीया, सार करि सार करि तारि गो-सामीया. १८ भोगपद राजपद नाणपद संपदं, चक्कपद ईंदपद जाव परमं पदं, तुज्झ भत्तीयं सव्वंपि संपज्जए, एह माहप्पु तुह सयल जगि गज्जए. १९ तुहि ज गति तुहि ज मति तुहि ज मम जीवनं, तात तूं परम गुरू कम्ममल-पावनं, कम्म करि विणय वर जोडि करि वीन, देहि मे दसणं अलजया अभिनवं. २० ईय भुवणभूषण दलियदूषण सव्व-लक्खण-मंडणो, मदमानगंजण मोहभंजण वामकामविहंडणो, सुररायरंजण नाणदंसणचरणगुणजयनायगो, जिणनाह भवि भवि तात ! भव मे बोधिबीजह दायगो. २१ - इति श्री सीमंधर स्वामि स्तोत्रं समाप्तम्. (मारी पासे.) [जैनयुग, भाद्रपद १९८५थी कार्तिक १९८६, पृ.५६-५७] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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