Book Title: Prachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 675
________________ ६६० प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह मानसरोवर माहि, हंमइ जे जलि जे जलि निरमल नाहीइ ए; अवर भलेरडइ ठामि, हमइ ते किम ते किम हंस रमलि करइ ए. ५ केतकि परिमल केति, हंमइ जोइ न जोइ न वनफल फूलडां ए; ए रस नत्थी अनेत्थि, हमइ भूलि म भूलि म भोला भमरला ए. ६ जलहर तणउ सजाण, हमइ पाणीय पाणीय चातकि चाखिउं ए; सरवर नदी निवाणि, हंमइ चांच न चांच न वाहइ आपणी ए. ७ जे सेतुंज गिरि जाइं, हमइ जगगुरु जगगुरु रिसह जुहारिवा ए; कहि किम तीह सुहाई, हंमइ तीरथ तीरथ चिंति अनेरडं ए. ८ आदिल अवली रीति, हमइ सगपण सगपण केरी ताहरई ए; आप वसइ मझ चिंति', हंमइ मू पण मू पण थाहर नवि दीइ ए. ९ तुह मुह-दरसण रेसि, हंमइ हूं हिव हूं हिव हऊअ ऊतावलउ ए; कहींइ पसाउ करेसि, हंमइ दरसण दरसण दाखि-न आपणउं ए. १० दूरि थिकउ नही दूरि, हमइ जइ किम जइ किम ऊजम ऊपजइ ए; इम बोलइ शांतिसूरि, हंमइ सेतुज सेतुज हइ घरि आंगणइ ए. ११ - इतिश्री सेतुजय भास: समाप्ता:. छ. संवत १५३५ वर्षे तुरओद महानगरे, अभयप्रभगणिना लिखितं एकाहारी भूमिसंस्ता(र)कारी, पद्भ्यां चारी शुद्धसम्यक्त्वधारी, ___ यात्राकाले सर्वसचित्तपरिहारी, पुण्यात्मा स्यात् सक्रियो ब्रह्मचारी. १ षट् री श्लोकः. श्री संघस्य शुभं भवतु. छ. [जैनयुग, अषाड-श्रावण १९८६, पृ.४७३-७७] ३. ख. मुगति. ४. ख. जइ किल जइ किल. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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