Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 3
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 5
________________ ग्रहण के बाद स्वयं भोजन करने गयी थीं। सब लोगों के एक साथ बैठकर दोपहर के वक्त भोजन करने की परिपाटी थी, पर अभी सन्निधान की अस्वस्थता के कारण कुछ परिवर्तन हुआ था। फलस्वरूप अकेली शान्तलदेवी अपनी सहूलियत के अनुसार भोजन की रस्म अदा कर लिया करतीं। आज जब वे भोजन करने गयी थी तभी यह समाचार आया था। पट्टमहादेवी को भोजन के बाद बुला लाने के लिए रेविमय्या को भेज दिया गया था। भाई को देखते ही बिट्टिदेव ने कहा, "हम खुद कहला भेजना चाह रहे थे; तुम आ गये, अच्छा हुआ। वेलापुरी से समाचार मिला है।" कहकर बगल के आसन की ओर उँगली से इशारा किया। उदयादित्य ने उस ओर देखा और चिट्ठी लेकर पढ़ने लगा। "आमाको शो की चः: पल: मानिय सम्हा : जदयादित्य जिस बात को लेकर आया था उसकी ओर उसका ध्यान ही नहीं रहा। "ठहरो, देवी को आ जाने दो।" बिट्टिदेव बोले। कुछ देर की प्रतीक्षा भी उसे सह्य नहीं हो रही थी। "माँ का स्वास्थ्य अच्छा 'नहीं। आप लोगों की प्रतीक्षा कर रही हैं। इस तरह दो पंक्ति लिखेंगे तो दूर पर रहनेवाले हमें क्या मालूम पड़ेगा? विस्तार के साथ लिखते तो क्या हो जाता? ये प्रधानजी ही ऐसे हैं। कम बोलते हैं, काम अच्छा करते हैं--इस तरह की प्रशंसा के कारण ऐसी चिट्ठी? हम दूर रहनेवाले पढ़कर परेशान होंगे-इतना तो उन्हें सोचना था न? सन्निधान का स्वास्थ्य अभी यात्रा करने योग्य नहीं। वहाँ की स्थिति स्पष्ट होती तो अच्छा होता!" उदयादित्य कुछ मुखर होकर बोल गया। "उदय, दो ही वाक्यों में सब कुछ समाया है। अधिक विस्तार की क्या जरूरत? माँ यहाँ की हालत से परिचित हैं। हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं यह बात मालूम हो जाने पर अब समय को व्यर्थ गवाना ठीक नहीं; यह बात स्पष्ट है, यह विदित भी है।" "तो क्या सन्निधान तुरन्त यात्रा करेंगे? सी भी अभी, इस अस्वस्थ दशा में ?" "हमारी यही इच्छा है। पण्डितजी को तुरन्त बुलवाओ। उनके रहने पर हमें यात्रा में पूरी सहायता रहती है।" उदयादित्य ने बाहर जाकर पण्डित सोमनाथजी को बुला लाने के लिए आदमी भेज दिया। पण्डितजी के आते-आते शान्तलदेवी भी भोजन कर आयी ही थों कि वहाँ उदयादित्य को देखकर चकित हो गयीं। विश्राम के समय आने का वह आदी नहीं था। वह आयीं और बैठने ही वाली थी कि इतने में पण्डितजी का आगमन हुआ। सहज ही उनका दिल धड़क उठा। घबड़ाकर पण्डितजी की ओर उन्होंने देखा। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन ::7

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