Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 3
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ "तो फिर विजयोत्सव के समय तलवार देकर..." बिट्टियण्णा कहते-कहते रुक गया। "बेटा, बिट्टि ! तुम्हारे उत्साह और कुतूहल को मैं जानती हूँ। परन्तु...तुम्हें सद्योजात शिशु की अवस्था में महामातृ श्री की गोद में डालकर तेरी माँ स्वर्ग सिधार गयी थी। गोद में डालने का माने हैं कि तेरा पालन-पोषण करें। इस छोटी उम्र में प्राणलेवा युद्धरंग में भेजने के लिए नहीं और फिर महामातृश्री की स्वीकृति के बिना तुझे रणरंग में जाने दिया गया तो उन्हें बहुत दुःख होगा। सुना है, सन्निधान ने तेरे ही जैसा हठ किया था। सबके लिए एक उपयुक्त समय होता है। अभी अपने उत्साह को रोक रखो। और हाँ, अभी सन्निधान का भी स्वास्थ्य अच्छा नहीं है। उन्हें मानसिक शान्ति की जरूरत है। तुम जो चाह रहे हो वह एक सन्दिग्ध विचार है, पुनका वे चितित हे जले। इसधिगी हात रही।" शान्तलदेवी ने कहा। "साड़ी पहनने पर षोडशो, तलवार लेकर बीरता दिखाने के लिए तेरह वर्ष! समय के अनुसार चाहे जैसा बातों को मरोड़ा जा सकता है।" भीतर ही भीतर बड़बड़ाते हुए मुँह फुलाकर खड़ा रहा बिट्रियण्णा।। "देख बेटा, बिट्टि! यह बड़बड़ाना कभी भी अच्छा नहीं। मन को ठीक न लगने पर उसे खुलकर कह देना अच्छा है, बड़बड़ाना नहीं। यह आस्मस्थैर्य न होने वालों का लक्षण है । तेरा अंग-सौष्ठव सोलह की उम्रवालों जैसा हृष्ट-पुष्ट होकर बड़ चला है । परन्तु यह तो झूठ नहीं हो सकता कि तेरी उम्र तेरह है। यह बातों का मरोड़ नहीं, उत्तरदायित्व का विचार है। अब जाओ, तुम ही विचार कर सोचो। सब भी अगर तुम्हें मेरी बात ठीक न जंचे तो आकर मुझे बताओ," कहकर शान्तलदेवी ने उसे विदा किया। वास्तव में उत्साह भंग होने की ही बात उसके मन में प्रमुख हो जाने से किसी दूसरी बात के बारे में सोचने का समय ही उसे नहीं मिला। शान्तालादेवी कह चुकी थी इसलिए फिलहाल इस बारे में उनसे कुछ न कहा जाय-ऐसा सोचते हुए वह सीधे उदयादित्य के पास गया। यों तो उसे भी पुनीसमय्या के साथ जाने का उत्साह था। फिर भी उसने उसके बारे में कुछ नहीं कहा। इसका कारण था महाराज की अस्वस्थता। बिट्टियण्णा के उत्साह ने उसके मन में भी स्फूर्ति ला दी। पट्टमहादेवी ने जो कुछ कहा था वह ठीक होने पर भी, बिट्टियण्णा से मिलने पर, खुद युद्ध में जा सकने का मार्ग निकालने की ओर उसका दिमाग क्रियाशील हुआ। वह सीधे सन्निधान के पास गया। तभी वेलापुरी से समाचार मिला। छोटा सा खरीता। उसमें इतना ही लिखा हुआ था कि महामात श्री का स्वास्थ्य अच्छा नहीं; वे सन्निधान की प्रतीक्षा कर रही हैं। यह खबर अभी-अभी ही मिली थी। शान्तलदेवी सन्निधान के नियमित आहार 6 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 483