Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 02
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 7
________________ स्नान की, तुम्हें जरूरत होती है सफाई की, इसी ढंग से मन इकट्ठा कर लेता है धूल को। लेकिन मन को स्नान कराने का कोई उपाय नहीं। इसलिए मन के पास' होती है एक स्वचालित प्रक्रिया सारी धूल और कूड़े को बाहर फेंक देने की पहली प्रकार का स्वप्न कुछ नहीं है सिवाय उस धूल को उठाने के जिसे मन फेंक रहा होता है। यह सपनों का सर्वाधिक बड़ा भाग होता है, लगभग नब्बे प्रतिशत। सभी सपनों का करीब-करीब नब्बे प्रतिशत तो फेंक दी गयी धूल मात्र होता है; मत देना ज्यादा ध्यान उनकी ओर। धीरे- धीरे जैसे-जैसे तुम्हारी जागरूकता विकसित होती जाती है तुम देख पाओगे धूल क्या होती है । दूसरे प्रकार का स्वप्न एक प्रकार की इच्छा की परिपूर्ति है। बहुत सी आवश्यकताएं होती हैं.. स्वाभाविक आवश्यकताएं, लेकिन पंडित-पुरोहितों ने और उन तथाकथित धार्मिक शिक्षकों ने तुम्हारे मन को विषैला बना दिया है। वे नहीं पूरी होने देंगे तुम्हारी आधारभूत आवश्यकताएं भी उन्होंने पूरी तरह निंदा की है उनकी और वह निंदा तुममें प्रवेश कर गयी है, इसलिए तुम्हारी बहुत-सी आवश्यकताओं की भूख तुम्हें बनी रहती है। वे भूखी आवश्यकताएं परिपूर्ति की मांग करती हैं। दूसरी प्रकार का स्वप्न और कुछ नहीं है सिवाय आकांक्षापूर्ति के पंडित-पुरोहितों और तुम्हारे मन को विषाक्त करने वालों के कारण जो कुछ भी तुमने अपने अस्तित्व के प्रति अस्वीकृत किया है, मन किसी न किसी ढंग से उसे सपनों द्वारा पूरा करने की कोशिश करता है। अभी कल ही एक युवक आया था; बहुत समझदार, बहुत संवेदनशील । वह पूछने लगा मुझसे, 'मैं आया हूं एक बहुत महत्व का प्रश्न पूछने के लिए। मेरा सारा जीवन इस पर निर्भर करता है। मेरे मातापिता मजबूर कर रहे हैं मुझे विवाह करने के लिए और मैं इसमें कोई अर्थ नहीं देखता । इसीलिए मैं आपसे पूछने आया हूं। विवाह अर्थपूर्ण होता है या नहीं? मुझे विवाह करना चाहिए या नहीं?' मैंने उससे कहा, 'जब तुम प्यास अनुभव करते हो तो क्या तुम पूछते हो कि पानी पीना अर्थपूर्ण है या नहीं? मुझे पानी पीना चाहिए या नहीं? अर्थ का तो कोई सवाल ही नहीं उठता। सवाल तो इसका है कि तुम प्यासे हो या नहीं हो सकता है कि पानी में कोई अर्थ न हो और कोई अर्थ न हो पीने में, पर वह तो असंबंधित बात हुई। संबंधित बात तो यह होती है कि तुम प्यासे हो या नहीं। 1 और मैं जानता हूं कि यदि तुम बार - बार भी पियो, तुम प्यासे ही बने रहोगे। मन कह सकता है, 'क्या है इसमें अर्थ, क्या है प्रयोजन फिर-फिर पानी पीने में और फिर से प्यासे होने में? यह तो यांत्रिक लीक सी जान पड़ती है। इसमें कोई अर्थ नहीं जान पड़ता। इसी तरह चेतन मन कोशिश करता रहा है तुम्हारे सारे अस्तित्व पर अधिकार करने की क्योंकि अर्थ संबंधरखते हैं चेतन मन के साथ अचेतन किसी अर्थ को नहीं जानता है यह जानता है भूख को यह जानता है प्यास को यह जानता है आवश्यकताओं को; पर यह नहीं जानता किसी अर्थ को वस्तुतः जीवन का कोई अर्थ नहीं है। यदि तुम पूछते हो तो तुम आत्मघात की पूछ रहे हो। जीवन का कोई अर्थ नहीं है। यह तो बस अस्तित्व रखता है और बिना अर्थ के यह इतने सौंदर्यपूर्ण ढंग से अस्तित्व

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