Book Title: Pat Darshan Author(s): Kalpana K Sheth, Nalini Balbir Publisher: Jain Vishva BharatiPage 38
________________ परवेयांचनासमतिनाथअरिवंताश्रीसिधपधास्वादे ताशसमवसरणनीस्चिनाकातेधिगवे सिदेसना नधिषश्रीसिधावजीमहिमान्नलिरीतंवरणेच्योकितनाएक नापाणिनि-बोधयामा तिर्थनामहिमामोटोजागी। घेरा पाणी चारित्रले असणकरीमध्यबस्था श्रीम मतिमाथजीईसहस्त्रमुरुषसंघानेबतलीकं चमरपमुषमा २००गलधर धिणनावीसझारसाकतापिषमषपांचला पत्रिमहज़ारसाधची रेलाषअडारहजारश्रावक यांचुला सोलरमारश्राविका चिपसेंधन्षदेमान बानिसलाई प्रायु कंचनवरामिरीर कौवलंबन एकरजारमनीः संघातोश्रीसमतसीघरजिजयरेसिपदनेवासा एहवा अनीसशिनायाने चाडबुमानशासानीशेजयायची तायनमानमानीविमलाक्लायनमोनमापाप्राना मूल पाठ हवे पांचमा सुमतिनाथ अरिहंत। श्री सिध खेवें पध्यारया। देवताई समवसरणनी रचना करी। ते त्रिागडें बेसि देसनाने विषई श्री सिधाच(ल)जी महिमा भलि रीते वर्णव्यो। केतलां एक भव्य प्रांणि प्रतिबोध पामी, तिर्थनो महिमा मोटो जाणी, वैराग आंणी, चारित्र लेई, अणसण करी सिधपदनं वरया। श्री सुमितनाथजीइं सहस्र पुरुष संघाते व्रत ली / चमर प्रमुख सो 100 गणधर, त्रिण लाख वीस हजार साधु, तापि प्रमुख पांच लाख त्रिस हजार साधवी, बे लाख अढार हजार श्रावक, पांच लाख सोल हजार श्राविका। त्रिण्यसें धनूष देहमान, चालिस लाख पुर्व- आयुं, कंचन वर्ण सरीर, क्रौच लंछन, एक हजार मुनी संघाते श्री समतसीखरजि उपरें सिद्धपदने वऱ्या। एहवा श्री सुमतिनाथने वांदु छुः। नमोस्तुः। श्रीशेजुजय पर्वताय नमोनमः। श्री विमलाचलाय नमोनमः।5। श्री श्री पटदर्शनPage Navigation
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