________________ इस तीर्थ का आठवां उद्धार व्यन्तरेन्द्र ने करवाया था। नौवां उद्धार श्री चंद्रप्रभु के शासनकाल में श्री चंद्रयशा ने करवाया था। उसी समय श्री चंद्रप्रभास (प्रभासपाटण) तीर्थ में चंद्रप्रभस्वामी के प्रासाद का निर्माण उन्होंने ही करवाया था। श्री शान्तिनाथ तीर्थे हि, चक्रायुधश्च राडवरः। उद्धर्ता तीर्थनाथस्य सदुपदेशयोगतः।। श्री शांतिनाथ भगवान के शासनकाल में उनके पुत्र चक्रायुध राजा ने प्रभु के सदुपदेश से यह दसवां तीर्थोद्धार करवाया था। एकादशो बलो रामस्तीर्थे श्री सुव्रतस्य हि। पांडवा द्वादशोद्धार-कारका नेमि तीर्थके।। श्री मुनिसुव्रत स्वामी के शासनकाल में बलदेव श्रीरामचन्द्र ने तीर्थ का ग्यारहवां उद्धार करवाया था। नेमिनाथ भगवान के शासनकाल में पांडवों ने इस तीर्थ का बारहवां जीर्णोद्धार करवाया था। वर्धमान विभोस्तीर्थे - जावडस्तु त्रयोदशः। वाग्भटो वा शिलादित्य-श्चतुर्दशस्तु श्रूयते।। श्री वर्धमान स्वामी के शासनकाल में महवा के श्रेष्ठी जावडशा ने इस तीर्थ का तेरहवां तीर्थोद्धार करवाया था। शत्रुजय माहात्म्य के कर्ता धनेश्वरसूरि के कथनानुसार चौदहवां तीर्थोद्धार शिलादित्य ने करवाया था। कुमारपाल चरित महाकाव्यानुसार उदयनमंत्री के पुत्र बाहडमंत्री ने यह चौदहवां उद्धार करवाया था। समरश्चौशवंशीयो-मान्य पंचदशस्तु हि। षोडशः कर्मसिहस्तु-साम्प्रतोद्धारकारकः।। यह तीर्थ का पन्द्रहवाँ उद्धार समराशा ओसवाल ने करवाया था। सोलहवां उद्धार जो वर्तमान समय में चालू है, जो अभी मूल है, वह करमाशा ने करवाया था। दुष्प्रसहमुनीशस्य काले विमलवाहनः। उद्धरिष्यत्यदस्तीर्थ, चरमोद्धारकारकः।। इस तीर्थ का अंतिम उद्धार पांचवे आरे के अंतिम समय में होने वाला सत्रहवां उद्धार श्री दुप्पसहसूरि के सदुपदेश से विमलवाहन नृप करवाएंगे। 17. तीर्थोद्धार निम्नलिखित है 1. प्रथम उद्धार भगवान ऋषभदेव के शासनकाल में उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती ने करवाया था। 2. दूसरा उद्धार छः करोड़ वर्ष के बाद भरत चक्रवर्ती की आठवीं पीढ़ी के दंडवीर्यनृप ने करवाया था। 3. उसके बाद एक सौ सागरोपम समय के बाद ईशानेन्द्र ने तृतीय उद्धार करवाया था। उसके पश्चात् एक करोड़ सागरोपम समय के बाद महेन्द्रेन्द्र ने चौथा उद्धार करवाया था। 118 पटदर्शन