Book Title: Pat Darshan
Author(s): Kalpana K Sheth, Nalini Balbir
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 130
________________ (5) कठिन शब्दार्थ ट. 0 अभाव थयानी खबर ह मृत्यु प्राप्त होने की खबर (पृ. 1) अव्याबाध ह अनंता (पृ. 2) असक्तछेदीह्न आसक्ति दूर कर, वैराग्य प्राप्त करके (पृ. 11) अस्याध्यह्न असाध्य (पृ. 13) आलोचह्न आलोचना, पश्चात्ताप (पृ. 12) आंसूछूईह्न शत्रुज्य पर्वत स्थित स्थल विशेष नाम (पृ. 2) उडवडाह्र पानी का झरना, पानीकुंड (पृ. 3) उपघातह्न उपद्रव, विनाश (पृ. 3) उपद्रव्यह्न उपद्रव, उपसर्ग (पृ. 4, 13) उलखझोलह्न शत्रुजय पर्वत स्थित स्थल विशेष नाम (पृ. 3) कातील करवत (पृ. 12) काल प्राप्तिह्न मृत्यु प्राप्ति (पृ. 2) कुमारीभस्मह्न जिसके घर कभी किसी की मृत्यु न हुई हो उस घर की भस्म (पृ. 4) के वराणोह कहा गया (पृ. 3) कोपसमाविनेह्न गुस्से को शांत करते (पृ. 3) गरडाह्न वृद्ध (पृ. 4) गाउह्न दूरि दर्शक एकम (पृ. 2) चय खडकीनेह्न अग्नि प्रज्वलित करके (पृ. 4) च्यार अर्हर छांडिनेह चारों प्रकार के आहार त्याग करना (पृ. 1) छल्लि अवस्ताईह्न मृत्यु समये (पृ. 3) जथोस्तित यथोचित (पृ. 4) जिरणह्न जीर्ण, पुराना (पृ. 1) जुधह्न युद्ध, लड़ाई (पृ. 12) जोरोह्न शक्ति (पृ. 13) झंपापातह्न कुदी लगाना (पृ. 10) तलाध्वजह्न शत्रुजय पर्वत स्थित स्थल विशेष नाम (पृ. 2) टुकह पर्वत स्थित शिखर विशेष (पृ. 2) ठामठामह्न अनेक/विविध स्थल (पृ. 10-12) थानकह्न स्थानक (पृ. 12) निमाडेह्न कुम्भकारकी भट्ठी (पृ. 11) निराबाध पदह्न अजरामर पद (पृ.) पडिलाभीह्न प्रतिलाभित (पृ.) परठविह्न भूमिग्रस्त करना (पृ. 11) परिणामीह्न प्रणाम करके (पृ. 3) पाठाराप्रखह्न जैन साधु के लकड़ी के बर्तन (पृ. 11) प्रजायह्न दीक्षा, प्रव्रज्या (पृ. 7) फरसङ्ग स्पर्श (पृ. 15) फाल देईह कुदी लगाकर (पृ. 9) फासुपाणिह्न प्रासुक जल (पृ. 3) मुर्छा उतारीनेहमोह त्याग करके, विरक्त भाव धारण करके(पृ. 1) मोहोछवह्न महोत्सव (पृ. 9, 14) रोखोयुंह रक्षण (पृ. 3) लवजवह्न हंसातुसी (पृ. 10) वस्य आवतो नथीह्न अंकुश में नहीं आता है (पृ. 2) वंछितपुरेत मनोकामना पूर्ण करे (पृ. 9) विकस्वरह्न विकसित (पृ. 1) विकुयाह्न दैवी माया से उत्पन्न करना (पृ. 13) शांतिजलह्न स्नात्रपूजा में शांतिस्रोत अभिसिंचित प्रभु प्रक्षालन जल (पृ. 13) सपरसङ्ग स्पर्श (पृ. 2) समथह्न समस्त (पृ. 2) समोसरयाह्न बिराजमान हुए (पृ. 2) संथारोह संस्तारक (पृ. 13) संलेखणाह्न उपवास, अनशन (पृ. 1) संबलत कलश (पृ. 3) सिद्धवधुत मुक्ति, मोक्षपद (पृ. 2) सुणुर स्वप्न (पृ. 12) स्तानके स्थानक (पृ. 12) स्वामिवछलह्न स्वामीवात्सल्य (पृ. 9) पटदर्शन - 123

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