Book Title: Pat Darshan
Author(s): Kalpana K Sheth, Nalini Balbir
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 129
________________ अन्य मतानुसार, यह गिरिराज समग्र पृथ्वी का आधार रूप है। उसका प्रत्येक कण सुन्दर-पवित्र है, जिससे यह पृथ्वीपीठ नाम से प्रचलित है। 17. सुभद्रगिरि- यह परम पवित्र गिरिराज सर्व को पवित्र करते हैं। उसकी रज, वृक्ष, पानी आदि सर्व पवित्र-मंगलमय है। यह भद्र अर्थात् कल्याणकारी है। उसके दर्शन मात्र से कल्याण होता है, जिससे यह सुभद्रगिरि नाम से प्रचलित है। 18. कैलाशगिरि- यह तीर्थ साक्षात् मुक्तिनगरी समान है। यहाँ मानव, विद्याधर, देवता, अप्सरा भी अपने पापकर्मों के क्षय करने आते हैं। इससे यह कैलाशगिरि नाम से प्रचलित है। अन्य मतानुसार इस पवित्र गिरिराज के स्पर्श से शेर्बुजी नदी का पानी पवित्र, पापहर्ता होता है, जिससे यहां विद्याधर, मुनि, मनुष्य आदि अपने पापकर्म क्षय करने आते हैं। पवित्र नदी में स्नान करते आनन्द-विलास से मोक्ष सुख-मोक्ष निरंजनी प्राप्त करते हैं, जिससे यह कैलाशगिरि नाम से प्रचलित है। 19. पातालमूल- इस गिरिराज का मूल पाताल में है। यह गिरि रत्नमय और मनोहर है, जिससे यह पातालमूल नाम से प्रचलित है। 20. अकर्मक-इस महान् तीर्थ पर आठ प्रकार के कर्म तीव्र विपाकरूप उदय में आते नहीं हैं, कृत कर्म का क्षय होता है और आत्मा कर्मरहित होता है। यह इस तीर्थ का प्रभाव है। यहाँ कौआ भी नहीं आता है, जिससे यह अकर्मक नाम से प्रचलित है। 21. सर्वकामद- यह गिरिराज पर यात्रिक-भक्त की सर्व आकांक्षा, मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। द्रव्य और भाव दोनों की पूर्ति होती है, इससे यह सर्वकामद नाम से प्रचलित है। पटदर्शन

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