Book Title: Pat Darshan
Author(s): Kalpana K Sheth, Nalini Balbir
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 127
________________ (4) शत्रुजय के विविध नाम इस पट में शत्रुजय तीर्थ, सिद्धांचल तीर्थ के 21 नाम प्रतिपादित किये गए हैं। शत्रुजय तीर्थ के 21 और 108 नाम विविध प्रकार से उपलब्ध होते हैं। सामान्यतः ये नाम उनके विशिष्ट गुण, लक्षण, वर्ग, कारण पर से नामांकित किये गये हैं, ऐसा प्रतीत होता हैं। उपलब्ध नामों में से एक नाम 'सहस्त्राख्य' मिलता है, जिससे माना जाता है कि प्राचीन समय में इस पावन तीर्थ के 1008 नाम प्रचलित होंगे, मगर अब 108 नाम प्राप्त हैं, उसमें से पटकर्ता ने 21 नामों का उल्लेख किया है, जो निम्नलिखित हैं सुयधम्मकित्तिअं तं तित्थं देविंद वंदिअं थुणिमो। पाहडए विजाणं, देसिअमिगवीसनामं जं।। श्रुत धर्म में कहे गये और देवेन्द्रों द्वारा वंदित उस तीर्थ को और विद्या के प्राभृत में जो 21 नाम निर्दशित किये गए हैं, उसी की हम स्तुति करते हैं सुरनरमुणिकयनामो, सो विमलगिरि जयउ तित्थं। माना जाता है कि तीर्थाधिराज शत्रुजय के ये नाम देव, मनुष्य और मुनि द्वारा किये गये हैं, वह विमलगिरि तीर्थ जयवंत हो। पट में निर्देशित शत्रुजय तीर्थ के 21 नाम निम्नलिखित हैं 1. शत्रंजय- इस पावन तीर्थ के प्रभाव से शुक्र राजा ने बाह्य और आंतरिक दुश्मनों पर विजय प्राप्त की थी, इससे शत्रुजय नाम प्रचलित हुआ है। 2. पुंडरीकगिर- आदिनाथ भगवान के प्रथम गणधर श्री पुंडरीक स्वामी ने इसी तीर्थ पर चैत्री पूर्णिमा के दिन पांच करोड़ मुनियों के साथ सिद्धपद-मोक्षपद प्राप्त किया था, इससे पुंडरीकगिरि नाम प्रचलित हुआ है। 3. सिद्धक्षेत्र- इस तीर्थ के प्रत्येक कंकर पर से अगणित-अनंत, भव्यात्मा ने सिद्धिपद-मोक्षपद प्राप्त किया था, इससे सिद्धक्षेत्र नाम प्रचलित हुआ है। विमलाचल- इस तीर्थाधिराज पर यात्रा करने वाले प्रत्येक भक्त, यात्रिक निर्मल-विमल-पापरहित होते हैं। उनमें पाप का एक अंश भी मौजूद नहीं रहता है, इससे यह विमलाचल नाम से प्रचलित हुआ है। 5. सुरगिरि- पर्वत में सुरगिरि अर्थात् मेरुगिरि जो सबसे बड़ा है, जिस पर प्रत्येक तीर्थंकरों के जन्माभिषेक होते हैं मगर वहां से किसी ने भी मोक्षपद प्राप्त नहीं किया है। शत्रुजय तीर्थ से अनंत जीवों ने मोक्षपद प्राप्त किया है, इससे यह सुरगिरि नाम से प्रचलित हुआ है। 6. महागिरि- महिमा की दृष्टि से यह तीर्थगिरि सबसे महान्, महानोत्तम है, इसलिए यह महागिरि नाम से प्रचलित हुआ है। पुण्यराशि- इस तीर्थाधिराज की सेवा-पूजा, यात्रा करने से पुण्यराशि-पुण्यपुंज (ढग) प्राप्त होता है। अतः यह .. पुण्यराशि नाम से प्रचलित हुआ है। 1. 120 - पटदर्शन

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