Book Title: Pat Darshan
Author(s): Kalpana K Sheth, Nalini Balbir
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 44
________________ हवेसातमाश्रीरूयाश्चस्वामिा एकहजारपरषसंघाचनलिधु विधानपतषः पचाएंगणधर चिणलापसाझ सामाप्रपच्यास छत्रीयफहजारसाधची बेलाषसतावनहजारश्रावक च्यारला बासनामाविका परमानविसलापर्वनिआ स्वस्तिकलंबन कंचनवल विचरता श्रीसिधाचलजिनोसय र्यकरी पाच मुनिसंघाश्रीसमेतसिघमिधादनेवस्थान नमोस्तश्रीहरिकपर्वताश्रीमिधाज्ञी विमलाइनमस्का रोजोपावस्वामिनासंबंधात्री, मूल पाठ हवे सातमा श्री सुपार्श्वस्वामि। एक हजार पुरुष संघाते व्रत लिधुं। विधार्भ प्रमुखः पंचागुंगणधर, त्रिण लाख साधु, सांमा प्रमुख च्यार लाख त्रीणुं हजार साधवी, बे लाख सतावन हजार श्रावक, च्यार लाख त्राणुं हजार श्राविका, बसें धनुष देहमान, विस लाख पूर्वन आउं, स्वस्तिक लंछन, कंचन वर्ण। विचरतां श्री सिधाचलजीनो सपर्य करी पांचसे मुनि संघाते श्री समेतशिखरे सिधपदने वऱ्याः। नमोस्तु श्री पुंडरिक पर्वतः। श्री सिधाद्री विमलाद्रीने नमस्कार होज्योंः।7। सुपार्श्वस्वामिनो संबंधः श्रीः। हिन्दी अनुवाद 7. सुपार्श्वनाथजी आपने 1,000 पुरुषों के साथ प्रव्रज्या अंगीकार की थी। आपके परिवार में विधार्भ (विदर्भ) प्रमुख 95 गणधर थे। 3,00,000 साधु, सोमा प्रमुख 4,93,000 साध्वियां, 2,57,000 श्रावक और 4,93,000 श्राविकाएँ थीं। आपका देहमान 200 धनुष ऊंचा था। आपका वर्ण कंचन (सुवर्ण) है। आपका लांछन स्वस्तिक है। आपकी कुल आयु बीस लाख पूर्व की थी। अपना निर्वाण समय समीप जानकर आप पांच सौ मुनियों के साथ सम्मेतशिखर पर पधारे। वहां आपने अनशन व्रत ग्रहण किये और निर्वाण पद-सिद्धत्व प्राप्त किया। श्री पुंडरिकगिरि, श्री सिद्धाचल-विमलाचल तीर्थ को भावपूर्वक वंदन। सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथजी को भक्ति-भाव पूर्वक वंदन। Transliteration l/havem satama sriSuparsva-svammi / eka hajara purasa samghate vrata lidhum. Vidharbhapramusah pamcanum ganadhara, trina lasa sadhu, Samma-pramusa cyara lasa trinum hajara sadhavi, be lasa satavana hajara sravaka, cyara lasa tranum hajara sravika, ba sem dhanusa deha-mamna, visa lasa purva num aum, svastika-lamchana, kamcana-varna. vicarata sriSidhacalaji no saparsya kari pacasem muni samghatem sriSameta-sisarem sidha-pada nem varyah. namo stu sriPundarika-parvatah sriSidhadri Vimaladri nem namaskara hojyoh //// Suparsva-svami no sambandhah // srih // पटदर्शन

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