Book Title: Pat Darshan
Author(s): Kalpana K Sheth, Nalini Balbir
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 82
________________ मूल पाठ वीसमा श्री मुनिसुव्रतजीः। हजार पुरुषसुं व्रतः। गणधर अढार, त्रिस हजार मुनी, पंचास हजार साधवी, एकला(ख) बोतेर हजार श्रावक, त्रिण लाख पचास हजार श्रावीका। त्रिस हजार वरसनुं आयु, कृष्ण वर्ण, कूर्म लंछन। श्रीमुनिसुव्रत वीचरतां श्रीसिधाचल पध्यारया। देवें समवसरण रच्यु। त्रिगडें बेसी परषदा आगलिं श्री विमलगीरनो वर्णव विसेष किधो। श्री मुनिसुव्रत स्वामिना तिर्थनं विषे श्रीरामचन्द्रजी संघ लेइनें, श्री सिधाचलजीइं आवीने, भरत चक्रीनी परें उधार करी ठाम ठांम तीर्थनी थापना करीने घरें आवी, पुत्रने राज्य आपी चारित्र लेइनें विचरता हवा। श्री सिधाचलजी आवी, अणसण करी, घणा मुनि सहित सिद(द्ध)पद वरया रामचन्द्रजी। वैलि चंद्र राजाने वीरमतीइं कुकडो करो। ते चंद राजाइं सोल वरस सुधी कुकडापणुं भोगवू। सोलमुं वरस कांइक अघुरुं छे, एहवें श्री सिद्धाचल उपरें चैत्र मासनी अट्ठाईई महोत्सव करवाने घणा देवता, घणी देवगन्या, घणा विद्याधरीओ, घणा मनुष्य मली प्रभुनी पुजा स्तवना करे छ। एहवें चंदनी स्त्रि प्रेमलालछी ते चैत्रनो अट्ठाई महोछव जोवानो हर्ष थयो। एहवें प्रेमलालच्छीइं सिवनटनी सिवमाला कनेथी च्यार मासनी अवध करी, चंद राजा ताम्रचुडनुं पांजरु लिधुं। ते पाजलं लेई श्री सिधाचलजीइं प्रेमला आवी। परमेश्वरजीना दर्शन करी, सूर्यकुंडमां नाही, पुजा करी प्रभुजीनो महछव करी देवता, देवांगनाओ, विद्याधर, विद्याधरीओनो नाटारंभ जोइ चित घj प्रसन थयुं। अनेक सखीओ सहित पांजरु उघाडी, दर्शन करावी सूर्यउद्याननें विषे आवी। तिहां प्रभु दर्शन करी, सुर्यवननी रीध जोई छे, जोतां ठाम ठाम सुर्यवन कुंडे आव्यो। प्रेमलालच्छीना हाथमां पांजरु छे, ते पांजरा माहें रह्यो कुर्कट ते विचारे छे, 'सोल वरस पंखीषणे फरयो, पण हजी माहरा कर्मनो पार नाव्यो। संसार तो स्वार्थियो छ। स्वारथ माटें माता पण वेरण थई, ए सिधाचलने विषे आव्यो। माठा कर्म होय तो मटी जाई।' एहवू तिर्थ फरीने पामवू दोहिलूं छे। इम विचारिने सुर्यकुंडमां ताम्रचूडे झंपापात दीधो। प्रेमलालछीई देखी विचारूं, "प्राणनाथें आतमघात करी, तिवारें माहरें जीवीने सु करव्युं छे?" इंम विचारीने प्रेमलालछीई पिण सुर्यकुंडमां झंपापात दिधो। ताम्रचूडने झडपीनें हाथमा लिधो। ते लवजव करतां दोरो तुटी गयो। मानवीनो अवतार थयो। सासन देवताई बिहुजणनें कुंड मांहिथी काढ्यां। देवताइं कुसमनी वृष्टि करी। प्रेमलालछीइं राजा सहित फरीने पुजा कीधी। मकरध्वज राजाने वधामणी गई। राजाई वधामणी देईने चतुर्विध सहित श्री सिधाचलजीइं आव्या। पुजा स्नात्र महोच्छव करि मोटे आडंबरें करी विमलपुरीइं राजा चंदने लेई आव्या। श्री सिधाचलना महिमाथी चंदराजा घणा काल सुधी राज्य पाली, श्री मुनिसुव्रत स्वामीनी देसना सांभली, वैराग्य पामि, चारित्र लेइ घणे मुनिइं विचरता श्री वि(म)लाचल आवी अणसण करी चंद्रमनिजी सिधपदनें वरया। हजार पुरुषसुं श्रीमुनिसुव्रत स्वामि समेतसिखरे म(मा)सभक्ति छेदी परमपद मोक्षपद पाम्यांः। नमोस्तु श्री विमलगिरी नमः सकार हजोः। श्री सिद्धीगिरीने नमस्कार हज्योः।20।श्री श्री श्री। पटदर्शन 75

Loading...

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154